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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) -------- मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१६१८] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ight प्रत v सुत्रांक मामोदर [३५] दीप अनुक्रम मित विह सचित्त मीसग अपिचलेणं च उम्मीसं ॥७॥जह चेय संजोगो कायाणं हेहओ तु साहरणे। तह चेन य उम्मीले होति विभागो गिरवसेसो ॥८॥चोएतिको विसेसो का साहरनुम्मीसयाण दोन्हंपि । भणति साहरणं तू निस्सहा मत्तयं रेवे॥९॥ उम्मीसं पुण दायायं च दोवंत मीसितुं देना। बीयहरियाइएहिं जड ओदणकुसुणमादीर्ण ॥१६२०॥ तंपि य मुक्खे सुक्खं मंगा बचारि जह तु साहरणे। अप्पाहुएवि चाउरो तहेच चाइण्णऽणाइण्यं ॥ १॥ उम्मीस मणियमेयं एतो वोच्छामि परिणयं दुविहं । दो भाये यतहा दो पुढ-- पादि छातु ॥२॥जीवत्तम्मि अवियते अपरिणय परिणयं गते जीने । बिट्टतो दुदवही हय अपरिणयं परिणयं चेव ॥३॥ बच्चे अपरिणयम्मी पच्छित होति कायणिष्पारणं । भावे अपरिणतं पुण एतो बोसमासेणं ॥४॥ सझिाउगादिणं तू अहवा अग्णेहि होति सामग्णं । वत्येगस परिणतो भाचो देमिति साहुस्सा ॥५॥ ससाण गनि परिणयो अपरिणया भापतो भवे एवं । अपावि दाणसणं अपरिणय भावतो होति ॥ ६॥ संघाडम हिंडतो एगस्स मणम्मि परिणय एसी। वितिए ण तु परिणमती तपि अपेशामा कलहो ॥ ७॥ पढमिन्लग भावम्मी अप्परिणयगेष्हणे तु लामासो। तस्सारत्ती भवति दाणं पुण होनि पुरिमई ॥८ामणित अपरिणयमेयं एत्तो पोण्डामि लिसवारंतु। लित्तम्मि जत्य लेबो सम्भ(या)ति कुसणादिवास्स ॥९॥ तं खलु ण गेव्हिया मा दहिय होज पच्छकम्मा तम्हा उ अलेक्कड पिकावाडी गइतव्यं । १६३०॥ इति उदिते चोएई जदि पच्छाकम्मदोस एवं तातो पि भोना थिय जावटीचाएँ भणति गुरू ॥१॥ को कालार्म नेच्छति आवस्सगजोग जदि ण हायति। तो अच्छतुमा मुंजतु अह ण तरे तत्व भंगऽवा ॥२॥ संसहत्यमत्ते सन मी साक्सेस भंगहा। महणंतु सायसेसे संसयभंगेसु भयणा ॥३॥ सत्तहस्यमले लिने सहगा तु दागमायामं । अवसेस लिन्त गुरुगो दाणं पुण होति परिमड्ड ॥४॥ लिसतिगत एवं एनो योच्यामि छड़िदय अगा। तपि तिह उहिदयं तु सचित्त मीसं च अचित्तं ॥५॥ उड्डिएँ चढलडगा तू आवत्ती दाण होति आयाम। अहन सचित्ताहीणं आवत्ती कायणिफण्णां ॥६॥ समित्नमीसए या चउभगो उडणम्मि इत्य भये। चउमंगे पडिसहो गहणे आगाविणो दोसा ॥ ७॥ उसिणस्त रहाणे देन्ताजोपहजोज कायडाहोबा। सीयपटणस्मिर काया पडिए महुपिंदुआइरणं ॥८॥ उदिव्य भनिय एवं गहणेसण एस परिसमत्ता तु। गहितसा जतो चिहिणा घासेसण पत्तमहुणा उ॥९॥ सा चतुहा मामादी सर्व वणोतु एत्य : दारम्मि। एतस्सेनोवणयं चोच्छामि इमं समासेणं ॥१६४०॥ मास्थाणी साह मंसत्यागीय मत्पाणं तुरागादीण समुदयो मच्छयवाणी मुतो॥१॥ जहण ललिओ तु मच्छो उपायगहणेण एप साहवि। अप्पागमप्पणथिय अणुसासे भुंजमाणो उ॥२॥ बायालीसेलणसंकडाम्मि गेण्हतों जीन ! ण सि छलितो। एहि जह म उलिनसि भुजतो रागदोसेहि ॥३॥ पासेंसणानु भा होति पसत्या य अप्पसस्था या अपसस्था पंचविहा सविवरीता पसस्था तु॥४॥ संजोइय अइबहुयं संगाल समय अणडाए। पंचविह अण्णासस्था तधिवरीना पसत्या न॥५॥ संजोयणेत्य दुविहा दोभावे याबधि बहिअंतो। मिक्सं चिय हिंडतो संजोए बाहिरसा तु॥६॥ खीरदहिकहराविण को गुडसालिकूनयतमादी । जातिता संजोए हिलतो अतो वोच्छ ॥७॥ अंतो तिह पादम्मी लंगण वयणे य होड बोव। अंजं रसोचकारि संजोययए तु तं पाए । ८॥ वाकवडगवाईगणादि संजोएं लंबग सम। गम्मि छोरवण तो सारुणर्ग इभे पच्छा ॥९॥ वनम्मि एस संजोयणा तु संजोएं जं तु दवाई। रसहेउ तेहिं पुण संजोयण होति भावम्मि ॥१६५० ॥ संजोएन्नो दधे रागदो हि अप्पा जाए। रागदोसणिमिन संजोययए तो कम्म ॥१॥ कम्मेहितोय मर्च संजोयपए भवात तुकारेणं। संजोषयए अप्प एसा संजोयणा मावे ॥२॥ रसहेर पटिफुटो संजोयो । कपए गिन्नगडा । जस अभत्ताउँदो सहोदओं अनावितो जो य॥३॥ अहवण जाई दवे पत्ते य पयादिगावि मेलति । सगमादीहि समं मा होत विशिषणीयंति ॥ अंसो बहि मागुख्या वितियाएसेग बाहि पाउलगा। चगुरुोऽभत्तई पडलहुगे होति जायामं ॥५॥ संजोयण भणिएसा अहण पमाणं भजामि आहारे। जावतिय भोत्ता साहहिं जापनहाए । बत्तीस किरकवला आहारो कुचिपूरओ भगिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीस भवे कक्ला ॥ ७॥ चवीस पंडगमा लेण गहिल जेण परिसइवीण । पान पंटसा उ तम्हा ने गो गहित एत्वं ॥८॥ एनो किनाविहीणं अई अहवर्ग च आहारं । साहुस्स बेन्ति पीरा जायामायं च ओमं च ॥९॥ पकाम चणिकाच जो पणियं मनपागमाहारे। अनिबार्य अतिपतुसो पमाणदोसो मुणेयत्रो ॥१६६०॥ बत्तीसाउ परेणं पकाम पिचं तमेव तु णिकामं । जं पुण गळतगेहं पणीतमिति बहा नि ॥१॥ अतिपय अति. बहुसो अतिप्पमागेण भोयर्ग मुत्त। हादेजवनामेज व मारेज व अजीत ॥२॥ णियगाहारादीयं अश्वयं अइबहुसो विषिण वारा उ। विष्ट परेण तु जंतुन पेय अनिष्पमाणं ता॥ अहया अनियमाणो आतुरभूतो तु मुंजए जे तु। तं होनि अतिपमाणं हादणदोसा उ पुजुत्ता ॥४॥ जम्हा एते बोला अनिरिने नेण होति चतुरगा। आपनी दाणं पुण आयाम होति जाय ॥५॥ दोहो अनिपमाणे तम्हा भोत्तब होति केरिसया भणति सुणसू जारिस मीत्त होति साहदि ॥ ६॥ हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे गरा। in का १०४२जीतकन्यभार्य मनिपरलसागर कराकर [३५]] 4NN44PROth ~36~
SR No.004138
Book TitleAagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages59
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size20 MB
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