________________
आगम (३८/१)
“जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [१...] ----
--------- भाष्यं [३९८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
KARTy4JAre/
4
प्रत
RE
सुत्राक
दीप
विहिमा। नेवियनंत परिच्छे विहपरिच्छाएं इणमो तु॥८॥कलमोयणो य पयसा अर्णव सभावअनुमतं तस्म। उपनीयं जो जलपरिच्छाएं सो सुदो ॥९॥ भावे पुष पुब्जिा कि सलेहो कतोलिन कयोति । इति उदिए सो ताहेतृणं अंगुलि दाए॥४०० ॥ पेच्छह वा एवं कि कतो नतोति एवमुक्तिम्मि । भगति गुरू ताग तयो एवं चिय ने ण संलीदं ॥१॥गर्ने दासलेखपुच्छे पासामि ते किस कीस ते अंगुली भग्गा?, भावं संधिमाउर! ॥२॥ भावो चिय एवं तसंलिहियग्नो सदा पयते। तेणायह साहे दिढतोऽमबकोंकणए ॥३॥ण्णा कोंकणगामचा, दोऽवि णिधिसया कता। बोबिए कैजियं छोईं, कोंकणो तपसमा गतो ॥ भणिोतए काए, अमची जा भो तुरताच पुण्णं तु पंचाहं, मेलिए णिहणं गतो ॥५॥ एवं हित लीटो, भावो जे ते तू साहणा। असलीदे ग साइग्लि, अमयो इव ते खलु ॥६० दिवाणि कसाए य, गारखे व किसे कुणान चर्य ने पसंसामो, किस साह! सरीर॥७॥ एवं परिचिऊण जदि सुबो वाहे पहिच्छति। ताहेब अत्तसोहि फोति विहिणा मेणं तु ॥८॥ आपरियपारमूलं गंतणे सति परकमे नाहे । सग अनसोही परसक्सीर्य तु काया ॥९॥जह सकुसलोबि वेजो अण्णास्स कहनि अप्पमो वाही। केजस्स बसो सोतुं वो परिकम समारमा॥४१॥ जाणतणवि एवं पायच्छिन्नविहिमपणा मिजणी हरिय पागहताय आलोएताय होति ॥१॥ उनीशगुणसमन्नागएन नेणवि अमरस काया। बालोयन निरण गरणा पण पुणो य पितियति। ॥२॥किं कारणमालोषण एवं पयत्तेण होति दायका । ममा सुणसू इनमो आलोचंतस्स जे उ गुणा ॥३॥ आचार विषयगुण कप दीपणा अत्तसोहि उजुभाषो। अजय परब साथच नही पहायजपर्ण च.४॥ पायजादी आलोषणा तु तिचतुकिय विसोही। जह अपलो तह पोकावत्रा उनिमम्मि ॥५. निम्ती वाचावी सादियाउको मुणेयम्। जो अतिवारी नेमू कयों आलोएति ने सा॥६॥णाणे विवाहपरूपण जेवा आसेवितं तवहाए। चेयणमषेयणं वा दो खेनादिसु इमं तु ॥७॥णामणिमि अवाणमेनि ओमेय अच्छति नबहा। गार्ण पागमेस्सा कुणती परिकम्मन देहे ॥ ८॥ पडिसेवति विगईजो मेहावर एसती पियति। बायंतस्सव किरिया कया तु पणगारिहाणीए ॥९॥ एमेव सणम्मिवि सरहणा परिनत्य पाणनं। एसपहस्थीयोसे पति धरणे सिया सेवा ॥ ४२०॥ बहला लिग साबण दामादी चाकमाइब()। आसेवियं गिरावजो आलोयए नेतुत्र ॥१॥पडिमेवणानिधारा जदि बीसरिया बहिचि होनाहि । तेसु कह वड़ियचं सादरमम्मि समनेनं १ ॥२॥जे मे जागति जिणा अपराहे जे जेसु ठासु। तेष आलोएई उप
हितो सत्रमाण ॥३॥एवं आलोएलो पिमुखभाषपरिणामसेजुत्तो। आराहो तहवि सो गास्वपलिउंचणारहितो ॥४॥ ठान पुन केरिसय होनि पसत्यं तु नमाज जोग । मणति *जय होजा सागस 3 तस बाधाओ ॥५॥ गंधानहजड़ाऽस्मयकतऽम्मिकम्मपुरुसेव । गन्तिकरयगदेवदाम्बिल पाराहिय रायपहे ॥६॥ चोरगकोहगकतालकरकए पुफ.
गसमीर या पाराममहे वियडे पागधरे पुषमणिएप ॥ ७॥पढमपिसिएसु कप्पे उदेससू उपस्सया जेतुविदिसतेय मिसिदा निरीए मरे सिना |CI उमाणे तब नमस)मूले मुण्णापर अणिमह हरिय मग्गे या एवंविहे ग ठाया होज समाहीय पाधानी ॥९॥ हरियपदिसंधारो मगसखामकरणं जहिं गरिय। चाउत्सान्या ने अगुणवेऊण ठातिर na.पाणगजोग्गाहर उनि से वन्य जत्वक उन्निा अप्परिणया व सो वा अप्पचय मेहिरक्सहा ।१॥ मुत्तमोगी पुरा जो तु, गीपायोपिय माक्तिो । सतेसाऽजारधरमेश सोपि सिर्फ तुमुन्भती ॥२॥ पहिलोम अणुलोमा पा, विसया जत्य दस्तो। वित्ता तस्य से निकलगा जामगरसचि॥३॥ पासस्योसम्मकुसीलतानपरिषभिया उणिवाया। पियधम्मऽपामीरू गुणसंपन्या अपरिलता ॥४॥जो जारिसतो कालो भरहेरखएर होति बासस । ते वारिसया तहमा अड्यालीसात मिया ॥ ५॥ अस वार संचार का पानी व अम्गवारम्मिा भने पाण विचारे काग दिसा जे समस्या या मालससं एतेसु. एकेके पटरो भये । दिसि पाउस पृष्ण एकेके, सपाली मति ॥ ७॥ एवं खलु उकोला परिहार्यती निदो मारोगीय कि णिमिन असुणकरण जाणे ॥८॥ तस्काय परिमाहारो बडो दायों तपासासापरिमकाले अतीच तना समजला ॥५॥ विगत सन औरण प्रहारस जणुषामा अष्विपिहारीगं समाहिकामाण उपाय ॥४०॥ कालसमानानुमतो पुमजासिओ सुमोचाडो पा। मोसिनति सोविया जयणाय पानिशहारे॥॥मारम्भिकोणतम ताहित पपत्तए माचो मायकषिपातिपनि नियम एवं ॥२॥किपत गोवल मे. परिणामासपि विशिसारो । मार, चोपणेब सीपयो ॥३॥चरिख च एस मुंजति सहाजण होति उमएवि। संजयगिहियान वा वो ऐति मीच शिीच ॥ िबोसिरिधीच सोला उसो. | समासामगेला जपणाए परिमाहार पर्वति ॥५॥ पासित वाणि कोबी तीरपत्नरस किमतेहि बेरमामगुणत्तो संवेगपसपनो होनि मोचा को पिवीकार प्रमेण किमनि । मेरमामणुपत्तो संवेगपरायणो होति। सा मोचा कोई मनुन्नरसपरिचतो इजादि। पाचतो देश का परोहीया ॥८॥सिपीकपाणये नावार. १५१८ जीनकापभाष्य -
मनि दीपालसागर
अनुक्रम [१]
19
-19
-1104
~12~