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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [२१] ------ --------- भाष्यं [१०१२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्राक [२१] दीप अनुक्रम SAR45Pg ॥१॥ देसिवमादिषदाण कमसो ऊसासमाणमेव नानपुण कह विष्णेया उस्मासा ? तमिह वोच्छामि ॥२॥ लोयस्मुजोयगा चउरो एग सत मुगप पंचासा दोहि भने निरिण | सया होनि वारसहिं ॥३॥ पंच सपा बसाए असहस्स च होति बत्ताए। देसियमाउस्सगे होड एवं तु परिमार्ग ॥४॥ अहवा-पणुकीस अडतेरस सिलोग पणनरिच बोहरा। सतमेगं पणवीसं दो बावणा य परिसणं ॥ ५॥ उदेस समुदसे सनावीस तहेवऽणुण्णाए । अव य उसासा पहुषणापडिकमणमादी ॥ २२॥ ६॥ उसय अझयणे मुतबंधे च | होति अंगे या उरिसगाविषयाणे सत्तावीस तु उस्सासा ॥७॥ पवणपतिकमणे अठुस्सासा उ होति उस्सगो। आदिग्गहमेग पुण पटुवयंसेवि अणुओगं ॥८॥ कालपडिकमणेऽविय असणे व होनि सदस्य । उम्सासा अहम काउसम्मो मुणेतबा ॥९॥ उदेसय अज्झायणे सुतखधगेसु कम पमादिस्स । कालाइकमणादिसणाणावाराइयारम् ॥ ०२३. ॥१०२०॥णाणायारो विहो मोहेग विभागयों व णालयो। उसय अजमवणे सुयसंधी विभागों तु ॥१॥ उदेसादिचउहवि अलियारो अहहा मतदी। पलेय पोय कालादि इह परयणम्मि ॥२॥ काले विगए बहूमाणे उपहाणे नहा अपिण्हवणे । बंजण अन्य नभए अडविहो गाणमायारो ॥३॥ जो तु करेनि अझाले सरमाय कुणा या असमाए। सन्माए वा ण कुणनि कालतियारी भवे एस ॥४॥ जच्चादिमदुम्मनो यदो विणयं ण कुष्यति गुरुणं। हीलयादव जो तु गुरु पिणपइयारो भये एस ॥५॥ गुनणागम्मि मुसम्भिव भनी परमाण जो न ण करनि। मनी होयुक्यारो बहुमायो गोस्वसिणेहो ॥ ६॥ बहुमाणे अड्यारी एमेसो पविणाओ समासेण। उपहाग होति यो आथतिमादिश्री सो य॥ ॥ जोनण कुणनि साहु महपाविण साहेवमुपहाण । सो उपहाणतियारो गेहवणेत्तो पचासामि ॥ ८॥ णिष्ट्वर्ण अवलवणं अमुगसगासे अहं गडहिनामि । अर्थ जगप्पहा आय. रियं सो उ उदिसानि॥९॥ पिष्टपणे अनियारी एमेसो पणितो समासेणं। पंजणमादिपदाणं अतियारमतो पवस्वामि॥१०३०॥ अपितं वंजणमक्खर नगिण सुन मुनव्व। पागमणिबदमे समयमादी कोजाहि ॥१॥ चम्मो मंगलमुकदै दया संपर गिजरा। तस्सेव य अत्यम्सा अण्णाणि य बंजणाणि करे ॥२॥ अहया मना बि अण्णमिहामेष बाधित अन्य । बजिजनि जेण अन्थी बंजणमिति भण्णते सुन ॥३॥ बंजणभेदेण इह अत्यविणासो हकेन तु कयाई। अस्थरिणासा चर चरणविणासे अमोक्सोमा मोस्वाभावानो पुण प्रयत्नविक्सा गिरग्विया होति। जहा एते दोसा नन्हा मुलग भिदिना ॥५॥ बंजणभेदो भणियो अन्य भेदं अतो पक्वामि। अत्यंत विषणती तेहि थिय पंजहरणं ॥५॥ आवारे मनमिणं आयंती पंचमम्मि अन्यणे। आयंती के आवनी लोगसि विपरिरा)मुसतिनि। अद्वाएं अगडाए एनेसु विष्परामुर्सती नुएवं मुनं आरिस अन्य विज्ञप्पेनिम अण्ण ॥८॥आवंती होनि देसो तत्थ नु अरहा कृवजा केया। सा पडिया हेडा तू तं लोगो विष्षरामुखद ॥९॥ अत्यविसंबाएवं तदुभयदारं इमं पाखामि। जन्य मुनस्था बल दोषि पिणमसनिच इमं ॥१०४०॥ धम्मो मंगारमुकत्यो, अहिंसा पचतमस्थए । देवाधिनस्त पसंति, जस्स धम्ने सया मती(सी)॥१॥ अहाकाय विति, कडेस रहकारी रणो भगम्मि गो जन्य. गहमो जय दीसनि ॥२॥ एसो तदुभयभेदो दोविणविणासंनि एत्य मुन्नत्या। एवं नुण कात दोसाने चेष पुषना॥३॥णाणायारो एसो अढविगप्पो जिणेहि पाणनो। उढेसगमादीण पग्लिनदित इम कमसा ॥४॥ गिविगनिय परिमडेगभन्न आयंबिल चणागादे। पुरिमादी खमण आगाढे एवमत्थेपि ॥ मू०२४॥ ५॥ उसे विविगत पुश्मिद सोहि नि अजायणे। सुनर्स एगमनं अंगम्मि य हॉनि आयाम ॥ ६॥ एवं जाणागादे गादजोगम्मि होति पुरिमादी। अनम्मि होनि समर्ण एमेवय होनि अन्धेऽवि॥७॥ सामागं पुण मुले मनमायाम पडत्यमत्यम्मि। अप्पत्तापत्ताचनचायणुदेसगादीम् ॥ २५॥८॥ ओहो सामण नुसत्रम्मी ने होति मनम्मिा अक्सेिसिय सनाये आयाम पन्य कमरोतु ॥॥ अपनी दृविहान मुनेण अन्धेण व बोदथ्यो । पुचित मुन जत्थे विनिय अपनो मुनयो । १०५० अनिन्तिणिआदि अपनो नो यएमएन पातयो। वायतस्स तु एते चउगुरुया उरिसादिस्य॥२॥ पत्नमपाएनसषि उदिसणादीगु व य पदेमु । यउगुरुया बोदचा अपवाए कारणा सुबो ॥२॥ कालाक्सिनणादिस मंदविसुहाउसमजणादिस या णिवीनिय प्रकरणे अपसमिसेजा अभत्तहो । मु.२६॥३॥कालासिजणाती पडिक जमिह कालमा तिनिहाय होति मंडली पराहा भूमी मणे. नच्या ४॥ भोयण सुने अन्य विविहला मंडली पुगेयष्या। कालऽविसम्मण मंडलिभूमीअपमजणे विगती ॥५० सुते वा अन्ये वाण करि गिसेच अक्ल का गए नि। चम्सहेज बदण उस्समा ग कुबनि नटत्य ॥६॥ आगादागागादम्मि सयभग य देखभंगे या जोगे उद पाउन्ध पाउथमायंबिलं कमसो समू:२७॥७॥ जोगो न होति दुनिहो अागादो क्षेत्र मह अगागादो। दुविहऽपि होति मंगे सने देसे यणातथ्योदामध्यभंग छह होति नजुध न देखें आगाटे। गागादे तु त्वं सजे देसे य आयाम ॥९॥ कह भगो साम्मी कर ना देसम्मि' एव चोएति। भणनि फरविगडाहि गाहाहिं इस पवारवामि ॥१०६॥ विगति अणडा जति न कुणा आयंबिल ण सरहनि। एसो उ साभगो देसे भंगो इमो होनि २०५० जीनकपभाय - मुनि दीपरनसागर [२१] अत्र तप-प्रायश्चित वर्णयते ~ 24~
SR No.004138
Book TitleAagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages59
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size20 MB
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