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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ------ --------- भाष्यं [१५१५] ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य S प्रत सुत्रांक [३५] दीप अनुक्रम पार्य पहंणगं वा सोड मिस्संकिओ भुजेणीसंकगाहिवाओ विगहेन्तों जिसम्ममण्णसंपा। संका पूणाद जारिस सब मए अमगरोहमि॥६महती भिस्सा तारिस एते. हिवि लद किण्ण होजाहिराणीसंकित्रकाऊ मुंजति त सकिओ चेच ॥ ॥ पढमो दोविलम्मो बितिको पुण गहणे भोवणे तक्तो। संक्तिमाचपणो पणुनीसा चरिमए मुद्धो ८॥ उमत्यो सुनपानी गसती उजु पयत्तेणं आवष्णो पीस सुतणाणपमाणतो सुबो ॥९॥ साहू सुतोषयुत्तो सुतणाणी जइचि मिन्हा असुद्ध। न केवलीवि जति अपमाण सुर्य भवे इहरा ॥ १५२०॥ सुत्तस्स अप्पमाणे चरणामायो कसो य मोक्खस्स । मोस्वाभाषाओ चिय पयत्तदिनखा मिस्त्था य॥१॥ सोलस उग्गमदोसा गव एलणदोस संकमेतृण। प्रमाणामामा मामास सुतणाणपमाणतो सुखी पणपीसेए दोसा संफियमासकियो यो ॥२० जइसका दोसकरी एवं सुर्वपि होति तु जमुई। णीसंफमेसियंतिम जसणिजपि पिदोसं ॥३॥ मग्मति सकियभावो अविसुदो अपहितेशतरपरले। एसिपि कुणयपुणेसिं अणेलिपति विसुद्धोतु ॥४॥ णिस्संक काउ तन्हा मोना संकियं मणितमेयं । मक्सिसमिदाथि बोर्ड मक्खित ज होति संसर्त ॥५॥ विह चमक्खिन सन सचिनं येप होइ अचि । सबिन तत्थ विहा पुढची भाऊय बकाए ॥६॥ पुटवीससरस्रवेगं हत्ये मते व सुखें पनगं तु आवत्ती दार्ग पुण णिवितियं होति दात ॥ ७॥ कदममस्सियमीसे लहुगो निम्मीसे होन्ति साहुगा तु। लहुमाले पुरिमा बालहुए होति आयामं ॥८॥ ससणिदुदहे या पुरपच्छा(पुर पच्छा अणु)कस्म मरिसर्य चनहा। उपकुडपिडकुक्कुसमविखनमेवादि बकाये ॥९॥ ससगिदहत्यमले पणगं आपत्ति दाण गिविगई। उदयो मासलाई आपत्ती वाण पुरिमददं ॥ १५३०॥ पुस्कम्मपतकम्मे ।। आपनी चतुलहु मणेतचा। दार्थ आयाम नगणकाय अतो तु चोच्छामि ॥ १॥ उपद्दपिट्ठमक्खिय परित्तहत्थे च मत्त सबिने। मामत आपत्ती दाणं पुण होति परिमइदं ॥२॥ एते उमविखए हत्ये मलेय होन्तणन्ते । आपत्नी मालगु दाणं पुण होति भत्तेकं ॥३॥ हिवंतीए साग छदेवीए बजरसोनिसं। उसमरिखतेत परिमाणतण मा होना सेसहिन पाएनाहिवि समीरणतसेहि सचिरामीसएणमक्खितण बितिजए किविः ॥५॥ सवित्तमविलयश्मि उहत्ये मत्ले यहोति पाउभयो। पदमपि दोषि परिसय हत्यो बितिमम्मि पनि मतो ॥६॥ तनिए मनो मस्तिो गवि इत्यो चरिमए ण एकोवि। आदितिए पढिसेही परिमो मंगो अणुण्याती ॥ ७॥ अचित्तमक्खित इहा मरहितदवेग पाविस्तरेणं । गरहित होनि दुहानमोगे तह उभययो पानि ॥८मंसयससोणियाऽऽसवलवादी गरहिएस मेगामि । मुलपुरीसादीहिंगरहियमेयं भने उभाए ॥९॥ दुबिई नगरलिए आपनी पउलह मणेता दान आचार्म तू जगरहिनेतो पाखामि ॥१५४०॥ अगरहिव कुरकुसणं गोरसपततेतमादीहिजता संसलमसंसर्स इमिहपिय होलि णाय अमिनमविसपी पवि भंगसु होति भवणा तु । जगरहिएण तु गहणं पहिसेहो गरहिए होति ॥२॥ संगजिमेहिं मज अगरहिएहिषि मोरसस्नेहि । मधुपागलेहि मा मष्तिपिपीलियाधात्री ॥३॥ गोसासंसने या पलतागुलादिकीदिसंसते। चतुलहुगा आपत्ती दाणं पुण होति आयामं ॥४॥ लोइयमाहितमलार्मसयसादीहिं मक्सिय जताना पुराण भाविध देसि व पटुन गहणं तु ग५॥ दोहिपि गरहिएहि मनुमाराई होइ अन्गाहर्ण। मस्रिवत मणिनं एवं एनो घोच्छामि गिक्किानं ॥६॥शिक्विन ठवियन्ति य एगई टाणमगणा एय। विह होनि ठान सथितं मीस अचिन आएवं चतुभंग भने सचिनादी अणेगह इमो तु। सचिनं सचिने सचिन मीसे याचिने वा ॥८॥ मीसं या ससपिले मीस मासे व हानि णिविसले चिनेक मीण य एवेको होनि परभंगो ॥९॥ अमा चित्तानिने नितं निलम्मि होति णियो। चिन या अविनं अचित्त निनोनयमचिने ॥१५५० ॥ अहणा मीसं मीसे मीसमचिते अचित्त मीसम्मि। अशिच अशित्ते सलिएसो होनि चतुमंगो ॥१॥ चतुभगेसतेसुं संजोगाडणेगहा मुणेयका। पुट दिएमु उस्पषि काए सठाण परठाणे ॥२७ सचिनपुचिकाए सचिनो व पदवि गिक्विनो। सचिने अश्चित्तो अभिवत्ने वादि सचिनो ॥३॥ अथिने अभित्तो सद्वाणे एस होति पउभगो। परमाणे पंचाये भाउमादीसिम होम्नि शासभिलपुढाविकानी सचित्ताउम्मि होनि मिस्तितो। सचिनो अधिने अवितो व सशिने ॥५॥ अबिनो अचिने एवं सेसेस सेटमादी संजोगा | तथा पंचसु परठागे उभगो ॥६॥ एमेव आउनेऊवाउपणस्सलिनमाण पनुभंगा। एकेके विष्णेया उच्चतुनगाण संजोगा ॥७॥ चिने सचिनेणं ने उनीस पनि संजोगा। अस्मिनमीसएणपि एपनिया पसजोगा ॥८॥ मीस अरिचणवि एवतिय रिचय हुनि का जोगा। लिपिपि उनीसा तू मिलिया अनरसय ९॥ अयण सचिनमीमा एगयो एगया य अचिनो । एवं चतुभगो तू तत्वाऽऽदितिए कहा गस्थि ॥१५६०॥जं पुण अचिनदर्श शिक्टिव पनि यणेमु कार्यम् । सहि मग्गणा त गमो अर्णता परंपरा हाति ॥१॥चितपुचित तर मोगाहिमगाद होनि णिपिसना होती परंपर पुण पिहुडगये जंतु पुढविठिय ।।शा उदगमगनर शायणीयमादि पारंपरं न णावादी ते उ अतर पारंपरेट कायमा इमे सन ॥३॥ विसायमुमुरिगारमेव अपनपनसमजाले । बोलीणे सत्त दुगा एतेन अगंतर पोय ॥४॥ विमाउति गदसति आगी दीसनियरपणे पटे। वास्मीसा पिगल अगणिकणा मुन्मुरो होनि ॥९॥ गिजाला हिलिहिलिया इंगाला ते भये मुणेनचा। होति पउत्थी भंगी ने जालाऽपलपिहान ॥६॥ पंचम पमा चिहरे उडमि यहोति (२६०) 8 २०४जीतकल्पमाष्य - मुनि टोपरगागर | [३५] ~34~
SR No.004138
Book TitleAagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages59
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size20 MB
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