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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूलं) --------- मूलं [१...] ------
--------- भाष्यं [६०४] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
जम्मी मा दिविलतो रक्सिया गाए गीतकामी उ ॥५॥ एचजन्यायाणा
प्रत
रणकप्पे हेवा दम्पस्स दस पो लाने
सुत्राक
दीप
माणे मुतत्यानं असंचरावणे
सोपरणे एकपोता इत्मीयोसा बजत्व खेतम्मि । ततो विचिक्लमंतो सेवेऽसंघरे सबो ॥५॥हावित भए विभिडेविकागतरजाती। अभिभावमा पपय विस्त विधामा मारिबबलोहार सुनिमित्त किरिया उरीयाए। सितानि भीम या मासाविसमत तायाए। अवाणका पामेसी अण्ण बतियारिकारनेदितासकियमाई मिले जयनाए पत्य सुबोआवाले बलत्यो पमजमानेदियहिं जाइ।बहपावितरस अहा जोसह किंचीकोनाहि ॥९॥ पंचमिए कारमादिधमा उबारने किंचित क्विादि मनबनुले पाकार सिसदिशादी।६१०॥ बच्यो बसिबमुंबो, मित्वारियों अह अजहरेटिं। कुरुगनसंघ बभिचारणावि राया जा ॥१॥ आयस्थि असहु बतरा वाले मुझे बजेण तु समाही। जाचितूम देन्ती पनगावीदिनु जयनाए॥२॥विषविक्खियाविबाला पालो पाचन विक्सितो को। बुबडोची कामी दिक्सितों रक्सियहिं ॥३॥ उदयग्निचोरसाक्यमएस यमणि पत्नजलसे था। तारे पर्तबादी बवादी जा चहा ॥४॥ कोई तु बियाममणी गोजमायी बाबि होज मिक्खयो। जयनाएं वियडगाणे गाएज म गीतवसभी उ॥५॥ एयजन्मायरामादे सबसने जाणकरण लालंयो। पहिलेकिन कयाची होति पसस्थो पसत्येसु ॥६॥ एसा कम्पियसेवा परीसमिक्षा समासतो कहिता। बहुमा उचारणातूदणमो बोच्छ समासे ॥७॥ ताबेतु रणकप्पे डायरस बस परे ठाये। कप्पाहोचाउनीसह लेसिमा बहारस परा 3100 पदमस्त बकमस्सा पदमेण परेल सेवित होणा। पदमे के अष्मितरं तु पवर्म मवे ठाणे ॥९॥ परमस यकजस्ता परमेण पदेन सेवित होगा। परमे सो अस्मितरं तय जाच मिसिमतं ।। ६२०॥ पक्षमा पारसा परमेण पदेन सेविध होगा। वितिए के जस्मितरंतु पार्म मचे ठा,१॥ पामरस बकास्ता पामेच पण सेवितं होगा। चितिए एक अम्भितरे तु पच जाय तसकार्य ॥२॥ पामस्स यकजस्सा पढमेच पएम सेवियं होजातइए के अभिमा तुपाम भये ठाणं ॥३॥ पक्षमस्सय कजला पढमेण पवेज सेवियं होगा। पतिए के अस्मिता तुच जाय तु विभूशा ॥४॥ पढमममुर्चत बितियादीए तु जान इसमें तु। पदमाईनु उ पुलो पुगो चारणिमाई
५॥ इपियसेवाए तू येणं चारिवाणि अदरसा बस बहारसमिता जासीयसतं तु गाहा ॥६॥ एवं बीविजस्तविकजस्ता गाह होति सवा समाबो गाहाबो पसारि सता बत्तीसा ॥ ७॥ चितियल्स य कास्सा पामेण पवेज सेवियं होजा। पामे के अम्मितरं तु फार्म मबे ठाणे ॥८॥ एवं वितियस्ताविकजससा एप पेप गाहायो। बितिमगा। मिलावणं सबाजी माणियबाजो॥९॥ पटर्म ठाणे यो दम थिय तस्स वा भवे पढी। पदम छपक बयाई पाणविषाओ सहि पडर्म ॥६३०॥ एवं तु मुसाबायो अपच मेहुन परिम्गावे चेच चितिळके पुवादी विपके होयप्पाची ॥१॥एवं वनपयम्मी रमेचारिया उ बहरल। एवमकप्पादीसुवि एकेके होतिमहरस ॥२॥ वित्तिय कर्ज कप्पो पदमपर्व सत्य मणणिमिता पार्म छक्क पयाई तत्पचि पढमं तु पाणयहो ॥३॥ क्षण अनुम्युयन्ते पुत्रकमेचं तु चारणीचा । बझारस ठाणाई एवं माणादि एक्केमके ॥४॥ उविस महारलगा एवं एते वंति कप्पम्मिा बस हाँति अप्पम्मी समसमासेण मुण संस॥५॥ येणासीयसतं गाहाणं कप्पे होति पचारि। बत्तीसायाते समय होती तु पारस य॥६॥ सोतृण तस्स पडिसेवणं तु आलोय कमविहिना आगम पुरिसमायं परिणाम बलं चर्सच॥७॥ सो गतो सवेश संतस्सालोइयायं सत्र। जापरियाण ती परिमाग वर्स चखेतं च ॥॥सोपचारविवि अनुस(म)जिता सुतोवरेसेणं । सीसस्स देव जाणं तस्स इमं वह पच्छितं ॥९॥ पठमस्त यकजस्सा इसपिहमालोषण मिसामिला। गक्स पीला में सुक्के पण तवं कुणा ॥४०॥ पदम सुक्के समं तवं कुणह ॥१॥ पदम सुकं पसंत कुणय।२॥ पाम मुकबीस सब कुणह॥३॥ पामः पशुपीसता मुझे ॥४॥ एवं सा उपचाए अणुचाए एक पेस गाहाओ। मकरं तू अभिलायो किहे पणगादि पत्तको ॥५० पाउमासवर्ष कुणह सुक्के ॥६॥ पदम चाउम्मासं कुणा किणे पठमा सम्मासत कुणा सुके॥८पदम छम्मासत कुणा किरे ॥९॥ किंतु वसं माणं गच्छतु व तस्स साहुणो मूल। असाचारा गयो अम्बितिया मा परिवरंत ॥१५॥ पणमादिभाणई साडूमूल मवे पुणकरणं । पुषमवहाय सर्व पंचाऽऽभवमाउ उचारितु.१॥लिंगाची जो गच्छे जहम उकोसओ बमोबसो। उकोस जहन्यो वा विहरडलो बम्बितीओ उ ॥२॥ वितियस्मयकजस्सा ताहि चउपीसगं विवाणित्ता। जयकारेणाउता इवन्तु एवं मजासि ॥३॥ एवं गतृण सहि जहोबएलेज बेहि पच्छिा आणाचवहारो मगिए सो धीरपुरिसेहिं ०४॥ एसाऽऽभाववहारो जहोपएस अहम भनितो। पारनवमहारं पुण सुण पच्छ! कम बोचई ॥५॥ उदारणा विहारण संधारण संपहारमा चेव। धारणा रसारणामा एगहिसा एते॥६॥ पाचशेण उमेव उबियपधारणा उ उदारो। विविधति पगारेदि धारेयऽत्य विचारा तु॥७॥ एगीभावम्मी भी धरणे' शानि एव मावेन। धारेवत्वपयामि तुम्हा संधारणा होति ॥८॥जन्हा उ संपहारेड, पबहारं पशुंजती । तम्बा उकारने वेण, गावचा संपहारणा ॥९॥धारणपणहारेसो पजियहो तुरिले पुरिसे। १०२२ जीतकम्पमाय -
मुनि दीपरमसागर
अनुक्रम [१]
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