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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [७३] ---
--------- भाष्यं [२२७१] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
प्रत
सुत्राक
[७३]
दीप अनुक्रम
यकरणा उजे तु अणभिगया चेच णायवा ॥१॥ चस्सदेण थिराधिर गहिया तू एल्थ न समासेणं। जंतयचिहीकमेणं जीयाभिमएण देजाहि ॥२॥ कतकरण अकयकरणा कयकरणा गच्छवासि इयरे या जकरकरणात णियमा णाया गच्छवासी तु ॥३॥ ते अमिगत अणमिगता अणभिगवा चिरथिराव होजाहि । कतअभिगत जे सेवे अणभिगते अस्थिरे इच्छा ॥४॥ अहया मिरपेक्खियरा दुबिहा पुरिसा समासतो हॉनि। णिवेक्यो जिणमादी ते णियमा होति कतकरणा ॥५॥ सायेक्ला हॉनि निहा आयरिय उबम भिक्खुणो येष। कत. | करणमकतकरणा मायरिया जमाया ॥६॥ भिक्खू गीयाऽगीया गीयत्य विराऽथिरा य बोदशा। कतकरण अकतकरणा एकका होन्ति ते दुविड़ा ॥ ७॥ अग्गीयापि विराऽथिर कयाऽकया र होति एकेकाकतकरण अकतकरणा कैरिसया होति गुणसु इमे ॥८॥छवाहमाइएहिं कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगत कतकरणसं जजोगनवारिहा कवी ॥९॥ मिरवक्ता एमपिहा सापेक्साणं तु किं णिमिण । निरिहो भेदो तु कतो आयरियादी ? इमं सुणसु ॥२२८० ॥ भण्णा जुवरायादी पत्युविससेण दंडों जह सोए। तह बत्यु- 1 विसेसेणं आयरियादीण आरुवणा ॥१॥ आयरिषउपज्झाया दोरिणवि नियमेण होति गीयत्या। गीयत्थमगीयस्था भिक्खू पुण हॉनि णातथा ॥२॥ कारणमकारणं वा जयणाईजयणा व नवजीयत्थे। एनेण कारणेणं आवरियादी तिविह भेदो ॥३॥कजाऽकज जयाजय अविजाणतोऽगीयो य ज सेवे। मो होति तस्स इप्पो गीते दप्पाजते दोसा ॥४॥ पिसिद्धा आवनी परिमं सवेसि तेण सावेवे । चरिमं चिय कयकरणे आयरिए अकए अणवहो ॥५॥कतकरणउबजमाए अणवहो होति मूलमकयमि। मिक्यू गीयचिरम्मी कनकरणे मूलमेव भवे ॥६॥अकयाथिरम्मी छेदो अस्थिरकवकरणे होनि सो चेन । अस्थिरकते उ उमारू अगीतपिरफरणे वे या अग्गीनअधिरे अकते छलहुगा होति तू मुणेतवा। अगीय अधिरकयकरण पछाबह चउगुरु जकने ॥८॥ एसादेसो एको जयमण्णो वितियजो तु आदेसो। चरिमं चिय आवण कतकरणगुरुम्मि अणवठ्ठो ॥९॥ अकतकरणश्मि मूल मुनमुक्झाए होति कतकरणे। अकतकरणम्मि छेदो इव णेयं अनुकतीए ॥२२९० ॥ एमेच य अणचट्ट आवरणे हॉति दोणि आदेखा। णिरवेक्यो ण मणिएन्य जं दोषिण ग होति । नसेने ॥१॥ अहणा मूलावष्णो सम्जे मूलत होति णिरवेक्से । मूलं चेच गुरुम्सवि कतकरणे अकतें छेदो तु॥२॥ कतकरणउपमाए दे सकतम्मि होन्ति कमाया। इय अढो
सीए णयं अयमणों आएसो॥३॥ सापेक्वानि व काउं गुरुस्त कदजोगियो भवे छेदो। अक्तकरणम्मि उम्मुगुक कतकरण उचज उमगुरुगा ॥ ४॥ जकने उहाहुगा तू इय अहदोबनीए त मानन। अहुणा उम्गुको तू आदर ठाइ गुरुभिणे ॥५॥ गाड्याढत्नम्मी ठायति लहुए तु भिष्णमासम्मि। चतुगुरुादसम्मी अमम्मी ठार गुरुबीसे ॥६॥ चतुलए चाबीसाए गुरुमास ठानि पण्णरसहि नलिनुए लहुपण्णरसे गुरुभिण्णे तानि गुरुदसहिं ।। आ लहुभिण्ने दसलए गुरुवीसा अंने ठाति गुरुषणए। लीसा आउन अनम्मी ठाति बहुपणएR
॥८॥ पग्णरसहि मुस्एहि अंतम्मी अहमम्मि ठायतित। पण्गरसहिं लहएहिं अंतम्मी ठाति उहम्मि ॥९॥ वसगुगए आदनं अंतम्मी ठायती पतुत्यम्मि। दसलहुए आढन ठावति नु अंने आयामे ॥ २३०० ॥ गुरुपणए आदनं एकासणयम्मि अंते ठायता लहुपणए जादत्त अंतम्मी ठाति पुरिमड्डे ॥१॥ अहमभनाऽऽद्धनं अंतम्मी ठायई अणिव्यिगनी।। जतविहीपथारो समासतो एसमक्खातो ॥२॥ एवं तु अजयणाए साविक्खाणं तु होति पच्छितं । अह गीयत्यो सबै कारण जनणाएं नो मुद्दो ॥३॥ एवं तु कारणम्मी जनणासेपिस्स पणिय दाग। अहवापि इस अणं आयरियादी जहाकमसो ॥४॥ आवरिषउवमाए कतकरणे अकतकरण दुनिहाता निफ्युग्मि अभिगते या अणभिगते घेष दुविहो तु
५॥ अभिगने का अकते या अभिगते विरतन अचिर या चिरे कतकरणे अकते अविर काकरणमकए य॥६॥ एले सम्बेऽवेगं आपत्ती पंचराइगाऽऽवण्या। न पण अविसिटुं पउत्थमादीहिं विष्णेयं ॥ ७॥ आतरिए कसकरणे त चिय पणगं तु होति दात। अकनकरणे पडत्यकयकरने” उनको न च ॥८॥ अयम्मी आया भिक्सम्मी अभिगतमि कनकरणे। आयाम दायां अकयकरणे उ भनेक ॥९॥ भिक्खुम्मी अभिगते विरकयकरणे य एमभनं तु। अयम्मी पुरिम अणभिगए अन्थिरे कतम्मि ॥२३१०॥ पुरि मइढो थिय णियमा अस्थिरजकपम्मि होति णिप्रिगति। अहवाऽभिगय अधिरे इच्छाएतं च अण्णं वा ॥१॥ एमेव य दसरायं सो आवणमेगमावलिा कलकरणे आपरिए दसराय
चेव दाय॥२॥ अकयकरणम्मि पनगं कतकरणे पणगमेवमाए। अस्तकरणे चउत्थं एवं तु अहदकनीए ॥३॥नामेया कमेच जाय अंतरिम होति पुरिमड़ई। इय पण्णरसावरदं ठायद एकासणगमते ॥४॥ पीसारवं डायति आयामे मिग्णमासमनहे। मासारखं पणगे दुमाल दसराएं ठायद तु ॥५॥ मासे पण्णरसे अनुमासे डानि बीसरातम्मि। पणमाले
पणुवीसे सम्मासे मासिए ठाति ॥६॥ छेदो दौमासीए मूले नेमासिबम्मि ठायति तु। अणनद्वे चतुमासे पारंचिहए तु पणमासे ॥ ७॥ एए मणिना नहुगा साधेऽपि तवारिहा समासेणं । एमेव य गुम्नाची गेया अहदकनीए ॥८. एमेच य मीसा वा अडकतीएं होन्ति तथा । एमेव पंचपंचहि मासादी सातिरंगादी ॥९॥जा उम्मासा या तत्ववि उम्पाय वह १०५५जीनकन्यभाष्य -
सुनिटीपरमासागर
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