Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 31
________________ आगम (३८/१) प्रत सुत्रांक [३५] “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) --------- मूलं [३५...] ----- --------- भाष्यं [१३१४] ---- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य अनिसहुँ । डिग्णम्मि बोधगम्मी कप्पनि पेनुं गिसढे य४॥ अणिसहमगुणावं कप्पति पेतु तहेर अहिई। चोग अणिसड्डेय जइटाणिसई अतो बोई ॥ ५॥ रायकुलातो भत्त सनीयं जडस्स तंग कप्पनि। मवि पिंडर्मतरा अविष्णमहणादिवोसा य॥६॥जइडो व पतीसगतो परिपाडे वसहियादि भंजिजा। डॉपस सैनिमोवि अदिडो कप्पती पर ॥७॥ अणिसह भणियमेयं एतो अज्बोयरं पवस्वामि। अहियं उदन अझोयरो तुजं सगिहमेगम्मि ॥॥ अहिगं तु नंदुलादी भाति अझोयरो उ सो लिविहो। जातिय पासंटे असा अन्मोयरे चेच ॥९॥ जानियम्मि सस्तो आपत्ती वाणमेत्य पुरिमड़ई। पासंडी साहूण य मासगुरू दाण भनेकै ॥ १३२०॥ एसो अझोयरयो सोलस या उगमस्स दोसने। कोडीउ भवंतिह कि भणिय होति कोडिति॥१॥कोदिते जम्हा बहवो दोसा ऊ सहिय एगत्व । कोडित्ति तेण भणति णन कोटीओ इमा नाओ॥२॥हणण हणावण अनुमोदणं च पवर्ण पयानणऽणुमोया । किणण किणावण जणुमोयणं च कोहीउ णय एया ॥३॥ गव वेवऽद्वारसर्ग सत्तावीसा बहेव पउपण्णा। णउती दो चेष सया तु सत्तरा होन्ति कोडीणं ॥४॥ना चेव य णच कोटी रागोसेहिं गणिय अहरस । अग्णाणमिच्छअचिरति तिहिं गणिए सनचीसा तु॥५॥ युटवादी उस संजय कहिं गणिया होति एस चतुपण्णा। संतीमादीदसहि ऊ गणिया पाउनी नुबोदवा ॥६॥णउती तिहिं गणिया न सगणाणेहि वह परिनेणं । सात डोलि होन्ति सयरा कोडी एस चित्वारो ॥ ॥ संलेवेण दहा उम्गमकोटी विसोहिकोटी य। उम्गमकोडी उनिह विसोहिकोटी अणेगबिहा ॥८॥हणणनियं पयणतिय उम्पामकोटी नु छबिहा एसा। अगावि इमा उबिह उम्गमकोडी मुनेयमा ॥९॥आहाकम्मुदसिय परिमतियं पूति मीसजाय चा बादरपाडियाविय अज्झायरए य चरिमदुये ॥१३३०॥ एसा विसोहिकोडी छबिहभेया समासतोऽभिहिता। एनो छहा सुर्व पोच्छामो आणुपुत्रीए ॥१॥ उम्मकोटी अवयन लेबालेवे य अकयकप्पे या। कंजिय जायामे चालुलोयसंसपूती य ॥२॥ सुकेणवि जछिक असुइण त घोषए जहा लोओ। | जय गणवि किक धागा कम्मेण मागं तु ॥३॥ लेवालेवत्तिज पुतं, अपि दवमलेवर्ट। तपि पेतुंग कप्पेति. तकादी किम लेवई ? ॥४॥ कजियमादीगह कहा तक त? भणनी | गुणम्। साहस उ आहेतुं जे कीरा आहकर्म तं ॥५॥ इय गाउमाह कोथी साहुणिमिना य ओयणी उकतो। ग उ कंजियमाचीणि नो बनो ओपणो एगो ॥६॥ण उजियमा दीगि तो नम्हणे कते तमे तु। जदिनि ग विद्वा आहा ओवनमहातहवि बजे ॥ ७॥ सेसा चिसोहिकोटी ठवितगमादी तुजा पडणाभोगा। गहिना हवेज उद्धा अण्णम्मी भनपा- IS प्रस्मि ॥८॥नाहे तु जहासनि विगिचित तमग्णपा(सं) तु। दबादिकमेणं तू इमेण वो समासेणं ॥९॥ दने त चिय द सेतपदेसेस जेसुले पडिय। काले अकालहीणं | जापाण्णा मिक्स कमति ॥१३४०॥ भाचे अस्त्तबुडो जसढो जं पासती नगे छड्डे । अणललियमीसदो सबविवेगोऽवयये सुखो ॥१॥ह पूणण संवरेजा नाहे परितारणा तनम्मत। इत्थं चउभंगो न सुक्खोतनिधाययो इनमो ॥२॥ सुक्खे सुक्ख पडियं मुक्से उातु सुक्स तु। डाले डाँच नहा एस पाल्यो भवे मंगो ॥३॥ मुक्से मुक्खं परियं । पढमगभेदो विभिचति सुनु। विनियम्मिच छोई गालेति च कर दाउं ॥४॥ ततिवम्मि कर छोई उपि ओदणादि जंतरति। चरिमे साविमो कुलमले पावि तम्मन् ॥५॥ का निमिचिन्तामढी जेसुपदेसं न सुनाए साह । मायावी गति सुज्को तम्हा असदेन होय ॥६॥ एवं गवेसगाए उम्गमदारं समासती भमिले। उपायणमहणात समासोऽहं पपासामि 1. सोसस उम्गमदोसे गिहिणो उसमूहिए विषाणाहि । उप्पायनाएं दोसे सात समुहिए जाण ॥८॥णाम उवणा दविए भावे उपायमा मुनयना । दा सवितादिविहानचिने दूपयादि तिनिहरमा ॥९॥ आवासुषमादीहिपालचियरंगवीयमादीमा सुवासदुमादीर्ण उप्पायणया तु सचित्ता ॥१३५०. कणगरपवाया जाचातपिहिता अमिता। मीसा उसका उपचातुणायणा दसे ॥१॥भावे पलत्याइयरा कोहादुष्पावणा तु अपसस्था। कोहाविजया धायादिणं च गाणादित पसस्था ॥२॥ अपसस्थियमापायणाएं एवं तु होति अहिगारो।सा सोरमाहातमा धावादीया मुयत्रा ॥३॥धाती तूती णिमित्ते आजीव वणीमए तिमिष्ठा या कोहे मागे माया सीमे पति दस एते। पपिच्छा. संवा विजा मतप चुणा जोए या उपायणाएं दोसा सोलसमे मूलकम्मे य॥५॥ धारयति धीचए मा चयंति वा समिति तेग पाती । जहाविमा आसि पुरा सीराई पंचधातीओ ॥॥सीरवमजणे मंडणे यकीलावणकचाती या धाइतं कुनमाणो एगवरं चातिपिडो तु॥७॥तं दुनिह पातितं करणे काराबणे य बोदान पुण रागमादी पहन पातित कुजाहि॥ पंचविहयातिपिटे आपत्ती पाउलाहु मुणेया। दार्ण आयाम तू दूतीपिं असो वोच्छ॥९॥ सग्गाम परम्मामे दुविहानी तु होति गाया। एकेकापिय दुनिहा पागर गाउण्णा यणाया पामह मिस्सको बिय अप्पाहेन्तो व भगति इयरोगा। सेजातरसंतिया सध्या वा अण्णमामस्मि ॥१॥ मिस्सारी पती अप्पाहमिति संलिया. ईणं । सा ते अमुर्ग माया सोरपिया पागई भणति ॥२॥ कण्णा पुणाइ विहा दूनी एवं तु होति गाया। लोउत्तरे तस्थेगा वितिया पुण उभयपक्रपेपि ॥३॥ लोउत्तर संपाङग संकतो ताव उग्णययगेहि। कह पुण उष्ण ? सेजायरीय अपाहिओ सेतु ॥४॥ संघाइयपचयद्वा वेती वित्ति अन्ह णवि कष्ये। अविकोतिया सुया ते जा बेड इन भणम् (२५९) S२०३६ जीतकल्पमाय - मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [३५]] ~30~

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