Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 12
________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [2] "जीतकल्प” छेदसूत्र-५/१ (मूलं) - • भाष्यं [ ३४७ ] मूलं [...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं कसम हा कार्ड ॥ ७ ॥ तत्येकं छम्मा चतुत्य च कार्ड पारेति आयामेनं नियमा चितिए उम्मासिए विगिद्धं ॥ ८ ॥ अट्टम दसम दुवाल काउं पारे तमेष आया। अन्येकहायणं तु कोटीसहितं तु काऊ ॥ ९ ॥ आयामचत्यादी काऊन अपारिए पुणो अण्णं जं कुणयायामादी तं भण्णति कोडिसहितं तु ॥ ३५० ॥ आदि उसिनो पारें हावतो आए जह दीलवन्तीखओ समं तह सरीरायुं ॥ १ ॥ बारसमम्मि य वरिसे जे मासा उवरिमा उचत्तारि पारणए तेसिं तु एकतर इमं धारे ॥ २ ॥ स उ गंडू पीस जाखेल तो मिसिरे खेलने (ते) कि कारण ? गाभरणं तु ॥ ३ ॥ लुखत्ता मुहतं मा हु सुजति तेण धारेड मा हु णमोकारस्सा अपचलो सो हु होजाहि ॥४॥ उको सिया तु एसा संतेहा ममा जहणा व संवच्छर उम्मासा एमेव य मासपरहिं ॥५॥ एतो एरेस अप्पार्थ कुजा मतपरिणं इंगिण ओमणं ॥ ६॥ अग्गीयसगासम्म मतपरिणं तु जो करेाहि ठगुरुणा तस्समये किं कारण? जेणिमे दोसा ॥ ७॥ मासेई अगीयत्यो चउरंग सबलोगसारंग जम्प चउरंगे हु सुलभं होत रंग ॥ ८॥ कि पुण रंग पुगो होति ? माणुस्सं धम्मसुती सहा वह संजमे विरियं ॥ ९ ॥ कि मासेति अगीतोपदमचितिएहि अहिओ सो उ ओभाले कालियाए तो निदम्योति उडेला ॥ ३६० ॥ अतो या बाहि या दिया व रातो वसो विचित्तोतु अहहहह पडिगमणादीणि कुलाहि ॥ १ ॥ मरिण अझाणा गच्छेतिरिय वणसुरेसुं था। संभरिऊण व वेरं परिगीयतं करेाहि ॥ २॥ अहबाब सबरीए मोयं देवाहि जायमाणस्स सो इंडियादि होया रहो साहे णिवाणं ॥ ३ ॥ कुजा कुलाचार सो बाझे तु गच्छ मिच्छतं तपचयं तु दीह मे संसारकंतारं ॥ ४॥ सो दिट्टो व विनिचितो संचिमोहिं तु अण्णसाहूहि आसासियमणुसो मरणजद पुणोषि पडिवो ॥५॥ एए अण्णे य] बहू तहिये दोसा सपनाया व एएहि कारणेहि अग्गीय व कप्पति परिष्णा ॥ ६ ॥ तम्हा पंच व उत्सन्न वादि जोयणसते समहिए था। गीयत्यपथमूलं परिममा अप रितो ॥ ७॥ एक व दो व तिथि व उको बारसेव वासाई गीयत्यपायमूलं परिमा अपरितो ॥ ८॥ गीतयदु खलु पहुंच कालं तु सम्गणा एसा ते खलु गवेसमा खेले काले परिमाणं ॥ ९ ॥ तेण य गीयत्थेनं पचयणमहियत्यससारेण विवरण समाही काया उत्तिमम्मि ॥ ३७० ॥ एवमसंवियोनी परिवतस्स होति गुरुगा। किं कारण तु तहिये जम्हा दोसा हवंति इमे ॥ १ ॥ णासेति अविग्गो चउरंग सहलीसारंग मि व चउरंगे म हु सुलहं होति च ॥ २॥ आहाकम्पिय पाजय पुष्का सीया य बहुजणे गायें। सेना संचारोऽविय उपहविय होति अनिसुद्धो ॥ ३ ॥ एते अण्णे य तहिं महवे दोसा सपचवाया य एतेण कारणं असंदिग्ध व कप्पति परिणा ॥ ४॥ लम्हा पंच व उस बाबि जोयणसने समहिए था। संकिपादमूल परिमा] अपरितो ॥५॥ एक व दो व तिष्णव उक्को बारसेव वासाई संविमापाद परियोजा अपरितो ॥ ६ ॥ संविग् हंख काले तु पचमाणा एसाने खगसमाने खेते काले य परिमाणं ॥ ७॥ तेण य संवियोणं पणगहित्यसारेण समाही काता उत्तिमम्मि ॥ ८ ॥ एसम्म निज विराणा होति कहाणी य सो सेहाविय चत्ता पावणं चे उड्डाहो ॥ ९॥ तस्सगतोमासण सेहादिजदाणे सो य परिचनो दातु व अदा वा हति सेहावि टिम्मा ॥ ३८० ॥ वह अमाणे मारेति बलपवणं च सेहा व जं पढिगया जणे अवणं पयासति ॥ १॥ यमेवाभोएवं अतिसेसि निमित्तियो व आयरिओ देवय शिवे (दया)पणे वजह पागरे कंचनपुरमि ॥ २॥ कंचनपुर गुरुसन्या देवयरुयणाय पुच्छ कणा य पारण वीर कहि आमंत्रण संपणासणया ॥ ३॥ अवादि सोपरलो पार मिष्त पाए गुरुगा असता व पविसी ॥ ४॥ सतं चेन चिरामासो, वासावासे नवस्तिर्ण नेणं तस्स दिलेलेणं, वासासु परिवर्ण ॥५॥ असियोमाड़ीएस तु पंडित हमे भवे दोसा संजम आयविराहण आणाईया य दोसा उ ॥ ६ ॥ असिवादीहि बहता ने उपरणं व संजना चत्ता उबहिं विणा य उडड चलो सो ॥ ७॥ एगो संधारगता बितियों संततिय पहिले अपत समाही तस्स व तेस व जसमाही ॥८॥ हवित्र जति वायातो वितिय तत्यठाए। चिलिमिलि जन्तरे काउं [हि] दाव जर्म ॥ ९ ॥ अणपुच्छाएं गणस्सा पडिए तं जती गुरू गुरुया चत्तारि तु विष्णेया गच्छमणि पावे ॥ ३९०॥ पाणगादीणि जग्गाणि जासिमाहिए। अनमे तस्स जा हामी परिकेसी य जायगे ॥१॥ अपरं अजोग्गो वा जोग्गोडी न जह भने एसणादिपरिकेसो. जाय तस्स बिराणा ॥ २॥ अपरिच्छ गुरुगा दोह जो जहाकमलो होति विराण दुविहा एको एको जं पाये ३ तम्हा परिष्णख रहे मावे व होति दोष सहियं तु जो परिच्छनि दक्षाएँ ॥ ४ ॥] मादणपदिवादी र मेसिन उदिते यदि उसंत ते तू अहो महिति ॥ ५॥ कि मोहिम से दहयो परिच्छा माये इ लेखि समासे ण पवित्रे ॥ ६॥ अ पुण विरुरुचे आणी दुर्गुणं आणेमोलि लिए पडिवति तेसि सो पासे ॥७॥ एवंभासी (सीने) तु परिभावयो १०१ जीत पाये - मुति दीपरलसागर ~ 11~

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