Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 23
________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१०] ------------ ---------- भाष्यं [९११] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सुत्रांक एलेमें सलमा हामि ए [१०] एस वित VITTHATgtrack dog PONENTATION दीप अनुक्रम नई ॥९१०॥ तगडगलकारमाएगउगहमणणुण्णवेतु जो गिव्हे । लहसग अदत्तमेयं अहवा रक्तादिस लहुसं ॥१॥ महणत पायकसरि पत्तहमण च गोचाओ बेच। लहसपरिगहमेसो मुच्छ करंतस्स साहुस्स ॥२॥ अगावि इमो अग्णो सेज्जातरगोनसानकागादी। धारण कल्पहरस बमक्सममत्तादि कुजा तु॥३॥ चितिवषयततियपंचमलहुस्सगा एतें होति मानमा । गाहेसा तु समता पवमी रसमि अतो वोळ ॥४॥ अपिहीय कासगंभियखुपपायाप्रसंकिलिहकमेस। कंदापहासविनासायपिसवाणुसंगेसु।मू.१०॥५॥ अविही हत्यमदा जहवा मुहत अबरातृर्ण जमाएविएवं सत्रएची एक बत्त ॥ ६॥ सुत्ति कतं ते सातं जीयं वा होति । उखातं तु बायजिसम्मो चिो उडले ओपनायो । ॥७॥ उडई उहहोवादी पायणिसम्मो अहे मुतलो। मुहर्णतय हत्यं वा उड्डोए तत्थ जयमाए ॥८. पुषकदमा उडेढे वायनिसम्मरस हो जपणेसा। पपिरितो जो खरी अविहीए सो जिसम्मो तु॥९॥ठेपणमेयणमादी असफिलिडेय होत मंतु। कंदप्यो बायाए कारण बहोति नावनो॥९२०॥हास तुहासमेच तु चिकहा पुन इस्थिमाइया चहा। कोहादी उकसाया विसया सहाया गेया॥१॥जा सितु पसजण सहसाउमाभोगयोरसाणं। सो होति विसयसंगो अविहीगाहा समत्ता ॥२॥ ललितस्सय सात्यवि हिंसमणावजत्रो जयन्तस्सा सहसाऽणामोगेण मिष्ठकारो पटिकम । मू०११॥३॥ स्खलमा एमिहा भणिया सहसाऽनाभोगतो पहोणादि । सा काय पुणो सुविधा सत्य इम पवस्वामि ॥ साधएम गुलिम समिती जाणाविएसपहवेना । सनत्यवि एते लालसा होति मायच्या ॥५॥ सहसाऽणाभोगेण हिंसमवावजओ जपतरस सहसाणामोगाणं को गु विसेसोलि पोशाउत्तोऽपिय होतु कारन्तोऽपिय ग यामतीबार। जहणं करेमि एवं कए व नार्थ जणामोनो ॥७॥आउन पुग्मभासा पबिसेषण सहसा एम जानु भो। म य नरति णियत्ते सहसकारो मवे एसो ॥ सहसाऽणाभोगा ऊ मनत्य उपणिया समासेणं। एस चिसो बिद्वाणं मिपाकारो पदिकम ॥९॥ आभोगेशविर तYएमु णेहमयसोगबाउसावीस । करसोगविगहापिएस मेयं पदिकमणं । मू०१२॥९३०॥ बानोगे जाणतो नबो यो तहोतिभातको। पुण करेग कप्पडसेमरसणिमाइम पा॥१॥ एमादी गेहा ऊजं कय कयहगादि आभोगा। नस तु पायचिन मिश्कारो परिकम ॥२॥ नमो मेहो मणितो भय सत्तविह हम तमोपामिशहपरलोगाऽऽयाणे अकर आजीवियऽसिलोए॥३॥ मरणभयं सलमयं एतेसि समासतो विभागों इमो। मगुवा मणुयस्सेव तु देवा देवस्स तिरीड तिरिए तु॥४॥ बीमेह सजाए लोगभए यहोतियोबा। परलोगभर्य विसरिस जहमतुओं की लिस्विचा ॥५॥ चणमाया मणति तन्मय चोरादियाण बीमे। तस्सेव य सहा सापागाराज कुमति ॥६॥ अणिमित अक-15 महाभयं यदि किसी पासती नहनि दी। अहवीए रातीय आजीवनयं जहा अहणो॥७दुबालो आयेसो कह जीवीहति' एस चितेति। मनभय सिवं चिय मरणमिति महा भयं जहन ॥८॥ असिलोगोनिह अयसो जाएष करिस्म होहि अयसो। असिलीगभर्य एवं वेयणमय हो सीवादी ॥९॥ सत्सपिई भयमेवं एएस उ बहिय तुज गणुए। नस्स विसोहिद्वाण मिच्छकारो परिकमणं ॥९४०॥ सोगं आमोएणनि चिन्तादि कांति विषयोगम्मि। तस्स तु पायलि मियाकारो पतिकमणं ॥१॥ आभोगमनाभोगे संवृष्यसंकुरे । पअहमरमे। पंचविहो बाउसिनो सहमानोगेण पायेय ॥२॥ कदयादी तुपदा पुनकमा तुइसमगाहाए। एक जहरिडेम तणुए सोही परिकम ॥३॥ वितियारसमस परिकमणारिहमाण सतिय नागनयवार बोळ तस्य इमा हो माहातु ॥४॥ संभमभयातुराबतिसहसागाभोगणपक्समो वा। सापातीचार तदुभवमासंकित पेन ॥ म.१३ ॥५॥ संभोगविहीं खलु हत्थी अगली उगमादीओ। भय वसुम मिलान वा मालबतेणाइओ पाहा ॥६॥ परममितीपातिएवि परीसहाऽऽतरो महान भाषा पहा इणमो समासतोऽहं पपरसामि ॥७॥ वाचति खेसाचा कालावा भावाचई चा दयावती नुसं जंबुलभ होति साहुस्स ॥८॥विस्थियमामा(ग्या)ी खेलापति एस होइ माना। कानपती तु ओमे भावे तु गुरु गिलाणादी ॥९॥ सहसाणामोगा तृ पृष्युत्ता अहुण बोच्छणपवलो । गायकसो उ पाक्सो सो होति इमेहि कमेरि॥९५०॥ वायपिनियसिमिय अहवाची होज मणिपाए। एतेहि अगप्पासो अहचा होना इमेहि ॥१॥ जक्खाइडसरीरो मोहणिए अहम होज कम्मदए। एतेहि अगमवतो होनाही कारणेति ॥२॥ जहुरिदमुं संभममादी कारणेसं तु। सहायायियारं णास तुकोजगप्पयसो ॥३॥ पुढविजलअगणिमास्यवणस्मती कुज सहगंगा। वियतियचउरो पंचिंदियं वसाह विरादेना ॥ एष मुसापावादी अणपको आपरेन साहं तु पिंडक्सिोहादीणि व सेवेज म उत्तरगुणाणि ॥५॥ एमावी आणण्णे अतियार चिसोहि समय होति। तामय गुरुमालय मिच्छामीएकर पति । आसकिए नभयं भूलगुणे उत्तरे व मानवं । परिच्छिवित गरि सके कतमस्य एस आसंका वितिय एम्मासिय रहिय एकमादिय पाहा। उनउत्तोविण याणतिज देवसियातिधाराति।मू.१४॥८॥ इति दुगुका' धातू संजमउपरोहि कुभिव्य होति। तं मणमा जाचिनिय बुधितिय एवं भान ।९॥ एवं मासिय चंद्विय एपमेषणाता। पडिलहियमादी आदीसरेण बोबा ॥ ९६०॥ एमादिर्य तु बहुसो अगसो होइमणेताच । उवउत्तोरिम जामति गवि समरती उजे मणियं ॥१॥ (२५७)। १००८जीनाम्याय - मुनि दीपरतसागर अत्र तदुभय-प्रायश्चित वर्णयते ~ 22~

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