Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” - छेदसूत्र-५/१ (मूल) -------- मूलं [९] ----
------- भाष्यं [८१३] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
॥२॥गमणकिरिया हु समिती सामग्णे परिणयरस वा गमण। सम्ममयतित्तिसमिती सा पंचह हरियमादीयामा कह समितीसु पमाद साह करेजा तु भण्णए मुणसु । उढमहो कहरनो पमा साह पमाएको सावजनास भासति गारस्थिय ददरेवमासेजा। एमादी तु पमाओ भासाए होति णातको ॥५॥हितों गोचरम्मि संक्तिमादीस जोतनाऽयुत्तो।
भिक्खाएं गहणकाले एसण एसो पमाओ तु ॥६॥ आदाणमंडगिरसेवणम्मि जो होइ एत्थमाउत्तो। एसो होति पमायो एत्य पमायम्मि उम्भंगा ॥ ७॥ महर्ग आदाणती होतिला Sणिसहो नहाऽहिवत्यम्मिा लिन पेरणे व मणितो अहिउक्खयो तु णिक्वेयो ॥८॥णवि पेहे ण पमजे णपि येहे समजनी तु विनिमंगो । पेहे ण पमज नतिओ पेह यमजे चात्यो तुर
॥५॥ जो सो चउत्प भंगो पहेति पमजती य तस्स पुणो। भंगा भनति चठरो दुपेहनुपमजणे पढमो ॥ ८२०॥ मितियो दुपेहसुपमजणम्मि तहओ सुपेहहुपमा। सुप्पडिलेहियमुष
मस्जियम्मि भगो बाउत्थेसो॥१॥ आदिमभंगा तिणि अपेदापमजणे य पदमादी। लिणि उपेहादीविय भगा होति एते ऊ॥२॥ उबारे पासवणे खेले सिंघागमारियाणा Fचा परिठवणे एत्यपि र पमाइणो होति छरभंगा ॥३॥ परिठवणुचारादी उबरती तेण होति उबारो। परसवात्ति य तेणें पासपणं भण्णए काई ॥४॥ अहवरई कात्रय पायं सई या
पासपणसणा। सेलरणाओ खेलो णासिगललणाओ सिंचाणो एस पमाओ मणितो पंचसु समिम इरियमादीसु।अण पर्सगेण चिय पोष्ठामिह अप्पमायं तु ॥६॥ जगमे
नरविही पद पद नसति चस्पूवंचा अक्सित्तायुत्तोऽहष्णगो एल्युदाहरणं ॥ ७॥ अह अहल्पगसाहू समितीअसमीय गइट हैपन्नी। लिओ पादो विष्णो अण्णाए सचिनी बार्वि भासासमितो साहु भिक्खडा मगररोहए कोबी। णि 'बाहिकडए हिंडतो केणयी पुट्ठी॥९॥ केवाय आस हत्थी? पणगिषयो दावणमादीणि । शिविण्णमणिः विषण गगर? नो बेदम समितो ॥८३०॥ बेहण वाणामोनी समायज्माणजोगवक्वित्ता। हिंडता णवि पिच्छह नवि सुबह किहहु? तो बेति ॥ १९ पुणेति कण्णेहि. बहु अच्छीहि पेण्यति। ण य दिई मुर्य सावं. मिक्यू अक्साउमरइति ॥२॥ अहव य भासनि कजे णिखजमकारणे न भासनिय। विकइविसोनियपरिवजितो जनी भासणासमिनो ॥३॥मायालमेसणाओ भोषणयोंसे य जो किसोइति । सो एसणाए समिओ दितो इत्य वसुदेवो ॥४॥ वसुदेव अग्णजम्मे आहरण एसणाएं समिएणं । मगहा गदिग्गामे गोयम विना पका परो ॥५॥ तस्सव मारुणिमजा गम्भो तीए कया संभूत्रो। विजार मतो उम्मासि गम्भ घेजाअणी जाए ॥ ६॥ मातुलसंवइदण कम्पकरण बेपारणा अलोए । गस्थि गुहा एत्व किंचित नो बेती माउलो तं च ॥ ७॥मा सुण लोयस तुम घुयाओ विणि वासि जेट्टयरी। दाहामि को कम्म पकयो पत्ते य बीचाहे ॥८॥ सा णेचा विसष्णो माजलओ
मणति अता दाहामि । सावि तहेव य णे तइयंती गेठा य साचि ॥९॥ निविष्ण नंदिवडगावरियाणं सगासि पिकवतो । जाओ उद्गुक्त्वमञो गिहा य अभिग्गहमिमं । Kamv॥ बादमिलानादीण पेयावर्थ मए तुकायत कुणा निवसनो स्वायजसो समगुमकिती ॥१॥ अस्सरहाण देवस्स आगमो कुणा दो समणकवे। अतिसारगहियमेगो अहः
वीय ठियो गओ विनिओ ॥२॥ पति य गिलाणों पढितो वेषाचचं तु सरहे जो उ। सो सिगा उद्धेतू सुतं च नं नंदिसणेणं ॥ ३॥ छट्टोववासपारणगमाणितो कवल पेनुकामेण । न सुत मोनु रभमुदिओ व मण केण कति ॥ ४॥ पाणगदपतहिं जगत्थी तेण बेति कति । मिग्गय आर्डिने प्रणेसणं कुणनि ग य पाडे ॥५॥ इति एकवार वितिय च हिडिओ लव तायवाराए। अणुकंपा नरंतो गयो यतो तस्सगास तु ॥॥ खरफरमणिरेहिं अकोला सो गिलाणतो कहो। दे मंदभाग! पु(कु)किय ससिरणाममेनेणं आसाहच्यारिनि तर्मणाम अहत उरिसिड आयो। एवाएं अपत्याएनअासि भत्तलोहिको ॥ ८॥ अमयमिव मणमागो ने फरमगिरं तु सो समतो। चालणगतो खामेती पुपति यत समनरित्नं तु ॥९॥ उडेह क्यामोनी सह काहामो जहा उ अचिरेणं । होहिह गिज्या तुम्मे बेती म नरामि गंतु जे ॥८५० ॥ आरमहा पट्टीए आरुदो नाहे नो पयारंगा परमामा गंध मुगनि सो तस्स पहीए ॥ १ ॥ फारसं पनि मुष्टिय वेगविपात्रो कनोनि दुकसबिओ। इय बहुपियकोसानि पदे पदे सोनि भगवं तु ॥२॥ण गणेनी करसगिर नविरपिसहमसागंध चाचरणमिव मणलो मिच्छामी दुई भणति ॥३॥ चिते कि कोमी कह णु समाही हवेज साहस । इय बहुविहापगारं गवि निष्णो आहे सामे(सोमे) ॥४॥ नाहे अभियुणिता गतो सयो आगयी वायरोपि। आलोएर गुरूहि य पाणोति तयो समणुसहो ॥५॥जह नेणं गवि पशिष एसण इय एव साहना गि। जामा एमेसा एसणसमिती समक्खाया ॥६॥ पुषि चक्न परिक्सिय पनि जो उति गिधा बा। आयाणडनिक्वेवणाएं सो होत ह समितो ॥ ७॥ एत्यवि से बिय भंगा काया जाच होनि अंतिमती। सुपटिलेडियमुपमनिर्वच भगो चउत्यो उ ॥८॥ एसो गेजमो एत्यं तम्मुत्युत्तो स होति खलु समिती। बाहरण गुरुण मणितो साहु पचामो गामति ॥५॥ ओगाहिए पहिगहनाहे ठिया कारण मावि जायेगो मेहेड मिक्सिकनी शिओं पुण आह८६०० पेडियमेतं कि पहला पुणो होज एव सिपोरा सम्मिहितरेक्याए वितरिता तस्य १००६ जीनकल्पभाष्य -
मुनिटीपरमागर
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yoछकासकरू
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