Book Title: Aagam 38 A JEETKALP Moolam evam Bhashya
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [?] दीप अनुक्रम [2] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित *****py+v ........... "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं) भाष्यं [१] मूलं [१] आगमसूत्र [३८ / १], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं - • अत्र मंगल आदि प्रास्ताविक गाथा प्रस्तुयते (सभाष्यं) श्रीजीतकल्पसूत्रम् - तुसारेते। अहय चउविहसंयो जत्थेव पट्टियं नाणं ॥२॥ अहवा पमय पसत्ये पहाण वयणं व पवयणं तेण । अव पवत्तयतीई नाणाई पत्रयणं 'कयपवयणप्पणामो बुच्छं पच्छित्तदाणसंखेवं जीयव्यवहारगयं जीवस्स विसोहणं परमं ॥ मूलं १ ॥ १ ॥ पवयण दुवालसँग सामाइयमाइ चिंगं ॥३॥ जीवापयस्था वा उपदेसिज्जति जस्थ संपुष्णा सो उवएसो पवयण तम्मि करेता णमोकार ॥४॥ वोच्छं वस्खामित्ती पच्छित्तं दसह एय उपरिंतु वहामि सवित्र किं मणियं होनि पछि ? ॥५॥ पानं छिंदनि जम्हा पायच्छिन्नंतिमण्णते तेणं पायेण बावि चित्तं सोहयई तेण पच्छिलं ॥६॥ पणगादी आयती निविगमादि एत्य दाणं तु संखेष समासोति ओहोति व होंनि एमडा ॥ ७ ॥ किं अत्थी अण्णेऽवी ववहारा जेण जीतग्रहणं तु? भण्णति चउरत्थणे आगममादी इमे सुणसु ॥८॥ पंचविहो बहारो दुग्गइभवमुरएहि पत्तो आगम सुय आणा धारणा य जीए व पंचमए ॥ ९॥ आगमओ बहारो सुणह जहा धीरपुरिसपण्णत्तो। पञ्चक्लो य परीक्खो सोचिह दुविहो मुणेयो ॥ १० ॥ पचक्खोऽवि य दुविहो इंदियजो क्षेत्र नोइंदियजो इंदियपबक्स्वोऽयि य पंचसु बिसएस गायडो ॥ १॥ जीवो अक्खो तं पति जं वह तं तु होति पथक्सं परओ पुण अक्खस्सा यह(सं) होइ पारोक्ल ॥ २ ॥ 'अमु चावणे 'उ धाऊ अक्खो जीवो उ भण्णए नियम जं वाक्यए भावे गाणं तेण अक्लोन्ति ॥ ३ ॥ 'जस भोषणम्मि' अहवा सहदाणि भोगमेतस्स आगच्छंती जम्हा पालेड व नेण अक्लोति ॥ ४ ॥ केसिंचि इंदियाई अक्साई तदुपलदि परचक्वं तं तु जुज्जति जम्हा अग्गाहगमिदियं विसाए ॥ ५ ॥ वादीवितयाणं जीवो खलु दिएहि उब लभगो जम्हाम (ग)तमि जीवेण इंदिया उपलभे विसयं ॥ ६ ॥ तम्हा बियाणं खलु अग्गाहमिदियं भवइ सिद्धं जं इंदिएहिं नलइ तं नाणं लिंगियं होइ ॥ ७॥ लिंगं चिंध नि मित्तं कारणमेगट्टियाई एवाई जाणार इंदिएहिं जीवो धूमेण अग्गिं ॥ ८ ॥ एवं सुइदिएहिं जनम लिंगियं तयं नाणं तम्हा सिद्धं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई ॥ ९ ॥ एत पलंगाभिहितं जह कण्हुइ इंदियाई पथक्वं अरुणा उ ईदिएहिं गातृणं वचहरे इनमो ॥२०॥ सोइदिएण सोउं तस्स व अण्णस्स चावि पडिलेवं चखिदिएण द पडिसेवितमण यार ॥ १ ॥ धूवादि गंधवासे मूर्तिगलियादियं व उवियं कंदा व गंधोबि रसोषितत्येव ॥ २ ॥ फासेणऽम्भङ्गित्यमादि फासतो अप्पमासि गाऊनं इंदियपचखेणं इय गाऊ वहति ॥ ३ ॥ गोइंदियपथको वहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पञ्चाक्लो ॥ ४ ॥ अच्छ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्हं संखेचजो उ एवं अस्वत्थं इमं वोच्छं ॥ ५ ॥ तत्वोहिणाण पदमं सामित्ताकमविसुद्धिओ होइ तो तं वोच्छ बहुविहं केलिय मेया भवे तस्स ॥ ६ ॥ संखादीआओ खलु ओहीनाणस्स समय डीओ काई भवपचया खओवसमिया व कायोऽचि ॥ ७॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स ? भष्णए जम्हा अंगुल असंभागा आरम्भ पाएसटीए ॥ ८॥ उकोसेणमसंखा जा लोगा होति लेत्तमाणेणं काले बाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥ ९ ॥ समउत्तरचट्टीए उकोसेणं असंल जाव भवे ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपसाणा भये पगडी ॥ ३० ॥ इस होति असंखाओ ओहिणाणस्स सपगडीओ संखातीतग्गणा ण केवलं होंतिऽसंखेज्जा ॥ १ ॥ ता होंति अनंताओ पोग्गलकायत्विकायमहिकिय संखातीति ततोऽ अना य गहिया हु ॥ २ ॥ सो पुण ओही दुविहो भवपाइयो खओवसमिओ य देवाण णारयाण व नियमा भवपचयो ओही ॥ ३ ॥ उप्पजमाणओ खलु भवपचाइओहि जत्तियो सिओ ओभासति उ बट्टी व हाणी ॥ ४॥ गुणपचइयो ओही गम्मजमणुनिरिय संखमाऊणं कम्माण वयोवसमे नयवरणिजाण उप्पले ॥ ५ ॥ अवही मज्जायत्यो परिमिनदशं तु जाणते जे (नृ ) मुत्तिमदवे विसयो ण खलु अब दवे ॥ ६ ॥ अतमकलदा ओहीणाणस्स हाँति पथक्ला ओहीणाणपरिणया दशा असत्याया ॥ ७ ॥ न पुण ओहीणाणं समासतो हिं इमं होइ। अणुगामि अणणुगामी बनय हीयमाणं च ॥ ८ ॥ पडिवाति अपडिवाली छहिमेवं तु होति विशेयं अणुगामिओ उ दुवो अंगो मझगतो ॥९॥ अंतगतोऽयि यतिषिही पुरतो तह माती य पासगओ पुरतो पुण अंतगर्त इमं तु वोच्छं समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उकं विदीव म वाऽऽदी। काउं पुरओ गच्छड पडतो व जह पुरिसो ॥ १ ॥ मग्गत अंतगतो ऊ तह चेन य गवरि मम्मतो काउं। अणुकढमाणु गच्छति अंतगतो मग्मगतो एस ॥ २ ॥ पासगनअंतगत उादि तब जाव तु मणि तु परिकमाण गच्छति अंतगर्त एतमिह भूणितं ॥ ३ ॥ जो से किंमत ? जह पुरिसो (पुरिसो जो कोइ चुलिमादीणि । १०१० जीवकल्पभाग्य Guzine, मात्र मूलसूत्र मुनि दीपरसागर ~4~

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