Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ ४८ अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व लेखक को अपनी ओर से कुछ नहीं कहना पड़ता । विविध परिस्थितियों के बीच पड़कर अपने कथोपकथन से वे अपने चरित्रों पर प्रकाश डालते हैं । लहनासिंह का चरित्र-चित्रण निर्दोष और साथ ही कलात्मक है। वह मानवता की उच्च भूमि पर स्थित है। वह संवेदनशील, वीर, निर्भर, निःस्वार्थी, देश-प्रेमी, कर्तव्य-परायण और त्याग-भावना से ओत-प्रोत है। उसकी वीरता यूरोपियन chivalry का स्मरण दिलाती है। गुलेरी जी ने उसके चरित्र द्वारा एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया है । इस कहानी का कथोपकथन अत्यन्त कलात्मक, स्वाभाविक, संक्षिप्त, परिस्थिति के अनुकूल और भावात्मक है । भाषा सरल, मुहावरेदार आडम्बरहीन और प्रभावोत्पादक है । कहानी में शृङ्गार और वीर का निप्कलकं और शुद्ध निरूपण हुआ है। __गुलेरी जी की इस कहानी का यहाँ उल्लेख एक विशेष अभिप्राय से किया है। वे घोषित अथवा प्रचलित अर्थ में कहानीकार न थे, किन्तु 'उसने कहा था' कहानी निश्चित रूप से एक नई जमीन तोड़ती है। प्रेमचन्द आदि द्वारा स्थापित परम्परा के प्रति वह निश्चित रूप से विद्रोह था, पर उसे किसी 'नई' कहानी के रूप में नहीं स्वीकारा गया और न मान्यता दी गई । नए शिल्प, नई भाव-धारा, अभिनव कलात्मक कौशल, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चरित्र चित्रण एवं मानस के विश्लेषण, वातावरण के बारीक-से-बारीक रेशों को भी यथार्थता से उभारने की प्रवृत्ति और सारी पृष्ठभूमि को यथार्थ के नए रंग देने की प्राकुलता, सब मिला कर यह हिन्दी की एक चिरस्मरणीय कहानी ही नहीं बन गई, वरन् एक नई दिशा का सूत्रपात भी करती है। गुलेरी जी के पास एक मानवतावादी दृष्टिकोण था, अनुशासन एवं संयम था, देशप्रेम एवं राष्ट्रीयता की चरम भावनाएँ थीं, पवित्र एवं आदर्श प्रेम की महत्ता थी और वीरता तथा प्रोजस्विता था-इन सबको एक कहानी में उन्होंने जिस प्रौढ़ता संगुफित किया है उसे देखकर आश्चर्य होता है-विशेषतः उस युग के सन्दर्भ में, जब कि कहानियों की मूल भावधारा ही भिन्न

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