Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 149
________________ १५६ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व अनन्त, प्रेम कपूर, से ० ० रा० यात्री तथा जगदीश चतुर्वेदी आदि हैं, जो निरन्तर लिख रहे हैं और एक-से-एक अच्छी कहानियाँ लिख रहे हैं । पर सबसे मेरी शिकायत यही है, और जो प्रत्येक जागरूक पाठक की शिकायत हो सकती है, वह यह कि जाने क्यों प्रोढ़ी हुई मानसिक कुण्ठाग्रस्तता, अकेलापन, सेक्स और मदिरा के प्रति अतिरिक्त मोह ( ! ) और फलस्वरूप उत्पन्न घुटन, विशृंखलता और अनास्था का स्वर ही उनकी कहानियों में अधिकांशतः मुखरित होता है और बहुधा उनकी कहानियाँ बहुत ही प्रतिक्रियावादी बन जाती हैं । इनमें रामनारायण शुक्ल, से० रा० यात्री, ज्ञान प्रकाश, प्रकाश नगायच, काशीनाथ सिंह, अनन्त तथा धर्मेन्द्र गुप्त अवश्य ही अपवाद हैं, जिन्होंने जीवन-संघर्ष और सामाजिक यथार्थ को अपनाने की ओर आस्था का परिचय देने की भरसक चेष्टा की है, जिसमें पर्याप्त अंशों तक वे सफल भी रहे हैं। पर दूसरे कहानीकारों ने ऐसा प्रतीत होता है कि कामू काका और सात्र को ही अपना आदर्श मान लिया है और उसी अनास्था और कुंठा भारतीय जीवन-पद्धति के साथ असफल ढंग से सामंजस्य बिठाकर चित्रित करने की चेष्टा कर रहे हैं जिसे बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता । इन लेखकों में जीवन के प्रति निष्ठा नहीं है और न मानवसम्बन्धों के प्रति कोई मर्यादा का भाव | यह स्मरण रहे कि पीढ़ियों का संघर्ष प्रत्येक युग में होता है, पर उसे आक्रोश, अमर्यादित एवं असंतुलित ढंग तथा असंगत भाषा में अभिव्यक्त करने को साहित्य में कभी वांछनीय नहीं समझा जा सकता । नई पीढ़ी को यह समझना होगा, और प्रौढ़ता की यह माँग भी है, कि व्यक्ति और उसके सम्बन्धों का उद्घाटन पूर्ण सहानुभूति एवं मानवीय संवेदनशीलता के साथ ही किया जाना चाहिए और यह एक ऐसी चीज़ है जिसे किसी काल की आधुनिकता प्रभावित नहीं कर पाती । आधुनिकता का मोह बुरा नहीं है, वरन् समकालीन भारतीय जीवन-पद्धति से प्रसूत आधुनिकता के

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