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अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१५५
दूधनाथ सिंह मूलतः आत्म-परक प्रवृत्तियों के कहानीकार हैं। उनके पास सफल शिल्प है। जीवन की मांसलता के प्रति नहीं, उनमें पलायनवादी वृत्तियों से मोह है । अस्वस्थ प्रवृत्तियों, कुंठा, नैराश्य एवं जीवन की विकृतियों मात्र का चित्रण उनकी कहानियों को एकांगी आधार-भूमि प्रदान करता है, जो वांछनीय नहीं है। रीछ', 'ममी तुम उदास क्यों हो?', 'रक्तपात' आदि कहानियाँ इसी तथ्य की और संकेत करती हैं। इसी सन्दर्भ में मैं यह कहना चाहता हूं कि जीवन की मर्यादा और मानव-सम्बन्धों की गरिमा महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिन्हें किसी भी युग की आधुनिकता खण्डित नहीं कर पाती । आधुनिकता परिवर्तनशील है, पर मर्यादा और गरिमा नहीं। जीवन के विकृत-से-विकृत पक्ष का चित्रण भी मर्यादा की मांग करता है और यही साहित्य का सौन्दर्य-पक्ष है जो उसे शाश्वत सत्य प्रदान करता है। नई पीढ़ी का इस सत्य के प्रति इतना असावधान होना और एक-पक्षीय आंधार रखना किसी भी दृष्टि से शुभ नहीं कहा जा सकता। ___महेन्द्र भल्ला पर निर्मल वर्मा का बहुत प्रभाव पड़ा है, पर 'दिन शुरू हो गया है', 'एक पति के नोट्स' आदि कहानियों में उनका अपना व्यक्तित्व बनता दष्टिगोचर होता है। उनके पास प्रतिभा है और जीवन की विसंगतियों को पहचानने की सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि है। उन्होंने कलात्मक सौष्ठव के साथ इन कहानियों में उनका विकास किया है, जिसमें उन्हें पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई है। उनमें आधुनिक प्रवृत्तियों का समन्वय भी हुआ है और जीवन के यथार्थ का परिचय भी प्राप्त होता है। उनमें सूक्ष्मता और सांकेतिकता है, यद्यपि यह कहीं-कहीं दुरूह हो जाती है।
___ इन कहानीकारों के अतिरिक्त १९६० के बांद के दशक में उभरने वाले कुछ प्रमुख-प्रमुख कहानीकारों में श्रीकान्त वर्मा, काशीनाथ सिंह, प्रकाश नगायच, अनीता औलक, विनीता पल्लवी, रामनारायण शुक्ल, प्रयाग शुक्ल, गंगाप्रसाद विमल, धर्मेन्द्र गुप्त, ज्ञान प्रकाश, सुरेन्द्र अरोड़ा,