Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 147
________________ याधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १५३ अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कहने की चेष्टा की है। उनमें प्रतिभा भी है और यथार्थ को पहचानने की क्षमता भी । यदि इसका उपयोग वे व्यापक सामाजिक सन्दर्भों में अपनाकर प्रगतिशील आस्था का स्वर मुखरित करने का प्रयत्न करें, तो निश्चित रूप से वे और भी सफल होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । वास्तव में वे कामू, सार्त्र, काफ़्का से अत्यधिक प्रभावित हैं और एक प्रकार की विचित्र-सी अनास्था एवं घुटन उनकी कहानियों का मूल स्वर बन गई है जिसे बहुत शुभ चिन्ह नहीं कहा जा सकता । 'फ्रेन्स के इधर और उधर' तथा 'सीमाएँ' उनकी उल्लेखनीय कहानियाँ हैं । रवीन्द्र कालिया का दृष्टिकोण भी वैयक्तिक चेतना के अनुरूप है । यद्यपि प्रारम्भ में उन्होंने 'इतवार का एक दिन' आदि कुछ कहानियाँ सामाजिक यथार्थ को लेकर लिखी थीं, जिनमें समकालीन यथार्थ परिवेश को पहचानने की उनकी क्षमता का आभास मिलता है, पर जाने किन कारणों से वे अब आत्मपरक धारा का विश्लेषण करना अधिक उपयुक्त समझते हैं । 'दफ़्तर', 'नौ साल छोटी पत्नी', 'त्रास', 'क 'ख ग' आदि उनकी कहानियाँ इसी भाव को स्पष्ट करती हैं। उन्हों आधुनिकता के नगरीय परिवेश को समझा है और उसकी निस्सार 1 तथा कृत्रिमता को अपनी कई कहानियों में चित्रित करने की चेष्टा की है, पर जीवन की मूल धारा से कटी होने के कारण उन कहानियों का विशेष महत्व नहीं है । वास्तव में रवीन्द्र कालिया के पास अनूठा शिल्प होते हुए भी स्वस्थ जीवन-दृष्टि का अभाव है और अनास्था तथा घुटन उनकी कहानियों का भी मूल स्वर बन गया है । उनमें बड़ी सम्भावनाएँ हैं और अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कहने की क्षमता भी है । यदि वे जीवन के यथार्थ की ओर इस प्रतिभा को दिशा प्रदान कर सकें, तो निश्चय ही वे और भी अच्छी कहानियाँ लिख सकेंगे । १०

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