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अाधुनिक कहानी को परिपाच/१३७ है, जिसने एक ओर यदि हमारी संवेद्य शंक्तियों पर दबाव डाला है, तो दूसरी ओर हमारी चेतना को भी जागरित किया है। इसलिए हम देखते हैं कि आज की कहानियाँ कल्पना के पंखों पर नहीं उड़तीं, बल्कि दुनिया की व्यावहारिक और वास्तविक जिन्दगी से उनका सीधा सम्बन्ध है। धरती के हर कण-कण के प्रति लगाव, हर मोड़ के प्रति जिज्ञासु भाव और हर गड्ढे को पाट देने की सहानुभूतिपूर्ण विह्वलता उनमें है। कमलेश्वर की कहानियाँ इसे पूरी ईमानदारी से चरितार्थ करती हैं।
कमलेश्वर की कहानियों में विशदता है, विराटता का बोध है, जीवन के विविध पक्षों का संस्पर्श कर यथार्थ अभिव्यक्ति देने का प्राग्रह है और आधुनिक भाव-बोध को स्पष्ट करने की समर्थता है । 'पानी की तसवीर', 'उड़ती हुई घूल,' 'नीली झील', 'देवा की माँ,' 'कस्बे का आदमी 'खोयी हुई दिशाएँ', 'दिल्ली में एक मौत', 'जार्ज पंचम की नाक', 'एक रुकी हुई जिन्दगी', 'तलाश', 'ऊपर उठता हुआ मकान' तथा 'मांस का दरिया' आदि कहानियाँ मेरे उपर्युक्त कथन की सत्यता अपने आप .प्रमाणित करती हैं । दिल्ली जाने के पश्चात् उनकी कहानियों में एक नई दिशा दिखाई देती है और तथाकथित आधुनिक जीवन-परिवेश की कृत्रिमता एवं खोखलेपन का पर्दा फ़ाश करने में उनकी यथार्थ अन्तर्दृष्टि ने बड़ी सफलता प्राप्त की है। आज की आधुनिकता के बारीक-से-बारीक रेशों को परिवर्तित सामाजिक सन्दर्भो में ही अभिव्यक्त कर उन्होंने समकालीन युग-बोध के विभिन्न आयामों को स्पष्ट करने में अपनी लेखकीय प्रतिबद्धता और सामाजिक दायित्व का निर्वाह करने की भावना पूर्ण की है । उन्होंने स्वीकार किया है कि 'मेरा जीवन इतिहास सापेक्ष है। उसके तमाम अन्तर्द्वद्वों का साक्षी है-व्यक्ति और उसकी सामाजिकता-दोनों का। जहां सामाजिकता की क्रूरता व्यक्ति के यथार्थ को दबोचती है या जहाँ व्यक्ति के अहं की क्रूरता सामाजिकता के यथार्थ को नकारती है, वहाँ आज की कहानी यानी नई कहानी नहीं हो सकती