Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 136
________________ १४२ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व देने की प्रवृत्ति का श्राश्रय नहीं लेना पड़ता । उनका शिल्प सीधा-सादा और सहज है । उनकी दृष्टि सीधे यथार्थ को पकड़कर सत्यान्वेषण के प्रति रहती है और इसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई है । अमरकान्त अपने आप में आज की हिन्दी कहानी की महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं, जिन्होंने प्रेमचन्द्र के बाद परिवर्तित सन्दर्भों को प्रेमचन्द जैसी मानवीय संवेदनशीलता मुखरित करने का प्रयास किया है । 'ज़िन्दगी और जोक', 'हत्यारे', 'दोपहर का भोजन', 'छिपकली', ' एक असमर्थ हिलता हाथ', 'डिप्टी कलक्टरी' आदि उनकी उपलब्धियाँ हैं । निर्मल वर्मा (३ अप्रैल, १९२९) उन कथाकारों में हैं जिनके लिए जीवन का अर्थ विदेश प्रवास, शराब और लड़की है । अधिकांश कहानियाँ इसी भाव को व्यक्त करती है, जिनमें कोई जीवन नहीं है, कोई यथार्थ नहीं हैं, केवल भावुकता हैं, वोदका, चीयान्ती आदि विदेशी शराबें हैं, प्राग शहर है, पब हैं पहाड़ हैं, गिरती हुई बर्फ़ है, सरसराती हुई हवा है और नीली आँखों तथा भूरे बालों वाली कोई टूरिस्ट या विदेशी महिला है । इन आधुनिक प्रसाधनों को जुटाकर वे कहानी के रेशे संगुफित करते हैं, जो प्रतिक्रियावादी तत्वों के ब्यौरे मात्र बनकर रह जाते हैं । 'दहलीज़', 'अन्तर', 'पिता का प्रेमी', 'पिछली गर्मियों में', 'पहाड़', 'जलती झाड़ी' तथा 'एक शुरूआत आदि कहानियाँ पढ़कर इस आधुनिकता से वितृष्णा होती है और आज की तथाकथित आधुनिकता के प्रति अपनी कला एवं सर्जनशीलता का ह्रास कर वितृष्णा उत्पन्न करना ही यदि निर्मल वर्मा का उद्देश्य हैं, तब उनकी सराहना की जानी चाहिए, पर दुर्भाग्य से बात ऐसी नहीं है । मुझे तो हँसी आती है जब अपने को प्रगतिशील और मार्क्सवादी कहने वाले एक अलोचक ( जिन्हें कमलेश्वर ने बहुत ठीक गज़टेड आलोचक की संज्ञा दी है ! ) निर्मल वर्मा की प्रतिक्रियावादी भावनाओं के विष को शंकर की भाँति पीकर उन्हें प्रगतिशील कहानीकार के रूप

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