Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 76
________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/८१ शरणार्थी जीवन से सम्बन्धित कहानियों की चर्चा करते समय मुझे सहसा मोहन राकेश की प्रसिद्ध घोषित की जाने वाली कहानी 'मलवे का मालिक' का स्मरण हो पाया । वैसे स्वातन्त्र्योत्तर काल में नए, सिरे से सामाजिक दायित्व का निर्वाह करने की भावना से अोतप्रोत स्वयं घोषित मसीहा कहानीकारों का ध्यान विभाजन से उत्पन्न परिरणामों एवं नृशंस हत्याओं एवं नंगी औरतों के शर्मनाक जुलूसों की ओर क्यों नहीं गया, इसका कारण मैं कभी नहीं समझ पाता । इस सन्दर्भ में जव मोहन राकेश ‘एक नई क्राइसिस' की बात करते हैं तो बात समझ में आती है, पर जब उस 'नई क्राइसिस' को 'नई कहानी' में गायब पाया जाता है, तो बात स्पष्ट होने बजाय उलझ जाती है। और जब डॉ० नामवरसिंह तथा डॉ. सुरेश सिनहा या डॉ० देवीशंकर अवस्थी नई कहानी की सत्ता घोषित करने के लिए सायास ढंग से परिश्रम करते दृष्टिगोचर होते हैं, तो मूल में घपलों को देखकर खेद ही होता है, आश्चर्य नहीं । जब मोहन राकेश की कहानी 'मलवे का मालिक' नई है, तो शरणार्थी जीवन पर लिखी गई 'अज्ञेय' की कहानियाँ कैसे नई नहीं है, जिनमें शिल्प की प्रौढ़ता है, स्वस्थ जीवन-दृष्टि है, नए यथार्थ का सशक्त उद्घाटन है और समष्टिगत आधुनिक संचेतना है । हाँ, उन्हीं के टक्कर की कहानी नरेश मेहता की 'वह मर्द थी मिलती है, पर वह अपवाद स्वरूप है। ___'अज्ञेय' की दूसरे ढंग की कहानियाँ पूर्णतया आत्म-परक हैं और वैयक्तिक संचेतना को लेकर लिखी गई हैं। इनमें वही प्रतीकों को देने तथा साँकेतिकता की प्रवृत्ति है, जिनसे इस धारा की कहानियाँ बहुत दुरुह एवं जटिल हो गई हैं। कुछ कहानियाँ तो बौद्धिकता के आग्रह से इतनी दबी हुई हैं कि 'नई' कविता के समान जब तक स्वयं लेखक उनका विश्लेषण न करे, साधारण पाठक उन्हें समझ ही नहीं सकता। शिल्प की दृष्टि से 'अज्ञेय' ने भी अनेक प्रयोग किए हैं और हिन्दी कहानी के कलापक्ष को पुष्ट और समर्थ बनाया है, इसमें कोई सन्देह

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