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८४ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
और आलोचकों को 'नए आलोचक' के नाम से अभिहित किया जाता है । किन्तु दुर्भाग्यवश हिन्दी में ये शब्द बदनाम हो गए हैं । जहाँ तक मुझे स्मरण है हिन्दी की प्रगतिवादी विचार-धारा के समर्थकों ने सर्वप्रथम साहित्य के साथ 'नया' शब्द जोड़ा था । तत्पश्चात् 'प्रयोगवादी' कविता का नामकरण 'नई कविता' हुप्रा । दोनों सन्दर्भों में 'नया' और 'नई ' शब्दों से साम्प्रदायिकता और दलबन्दी की बू आती है । 'नया साहित्य' राजनीति से प्रभावित साहित्य विशेष का द्योतक बनकर रह गया । 'नई कविता' से उस कविता का तात्पर्य समझा जाने लगा 'जिसमें कवि का टूटा व्यक्तित्व', कुंठा, 'मानसिक घुटन', 'दुःस्वप्न', 'जीवन की सड़ाध' आदि उन जटिलताओं की अभिव्यक्ति होती थी, जिनसे कवि का मानवीय अस्तित्व ही संकटापन्न हो गया था। उसकी अतिशय बौद्धिकता और संप्रेषणीयता के अभाव ने उसे उपहासास्पद बनाने में सहायता की। ऐसा नहीं होना चाहिए था, किन्तु ऐसा हुआ, यह सर्वमान्य तथ्य है | अतः कहानी के साथ 'नई ' शब्द का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए, नहीं तो उस पर भी दलबन्दी की छाप लग जाएगी। कहानी के भविष्य के लिए यह घातक होगा । शायद कुछ लोग ज़बर्दस्ती कहानी को दलबन्दी की कीचड़ में खींच लाना चाहते हैं और वे जानबूझ कर उसके साथ 'नई' शब्द जोड़ते हैं ।
और जब कुछ लोग 'नई कविता' और 'नई कहानी' को समकक्षता की तुला पर तोलने लगते हैं, तो 'मुग्ध' हुए बिना नहीं रहा जाता । संभवतः वे उस समय या तो दोनों की मूल प्रकृति को दृष्टिपथ में नहीं रखते और 'नेतृत्व' का भार सम्हालते समय जो नहीं कहना चाहिए कह जाते हैं, या वे 'नई कविता' के भविष्य के सम्बन्ध में चिन्तित हैं । इस सम्वन्ध में यह बात स्मरण रखने की है कि यूरोप और भारतवर्ष में जब से शिक्षा प्रसार, पढ़ने-लिखने की आदत पड़ने, मुद्रण कला का प्रचार होने और आर्थिक परिवर्तन होने के कारण मध्य वर्ग का जन्म हुआ और मध्य वर्ग ने जब से जीर्ण-शीर्ण परम्पराओं, आस्थाओं और मान्यताओं, विश्वासों के प्रति विद्रोह प्रकट किया, तब से कथा - साहित्य