Book Title: Yukti Prabodh
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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युक्तिप्रबोधे ।
मंगलाचरण
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॥ श्रीशंखेश्वरपार्श्वजिनचरणसरोजेभ्यो नमः ॥ श्रीमन्मेघविजयोपाध्यायविरचितं स्वकृतवृत्त्यलङ्कृतं
यक्तिप्रबोधनाटकं ( वाणारसीयमतभेदकं ) स्फुरच्चिदानन्दमयात्मने स्तात्, नमः समस्तान्तरशत्रुजेत्रे । श्रीपाश्वदेवाय सदैव देवनदेवपूज्याय विशुद्धवाचे ॥ १ ॥ | सिद्धार्थभूपतनुजो जिनसार्वभौम, एकातपत्रभुवनत्रितयाधिपत्यः । यं शुक्लशासनवलं समवेक्ष्य संघराज्ये न्यवीविशदलं जनता
नतांधि ॥ २॥ स्याद्वादरूपमसरूपमिलाविलासि च्छत्र विचित्रनयचित्रितमादधानः । दिग्याससः प्रकटचारुनटप्रवृत्तेः, पक्षं द्विधा +विजयते जयतेजसा यः ॥३॥ यच्छासने विशदकेबलबोधभाजां, व्याहारयुक्तिकलया चरणं प्रपन्ना । सम्यग्नयेषु निपुणा जनताऽप्रातिशुक्लध्यानावधानविधिनाऽम्बरशौक्ल्यहेतुः ॥ ४॥ उपकरणपटनामव्ययस्थानराज्यं, दिशति चरणकर्मण्याशु कौशल्यभाजाम् । सनिदिशति निजवाचां यश्च वैमत्यवृत्तेरवसनरुचिलोकस्यापि दोर्गत्यमेव ।। ५॥ नग्नाटलुंटाकगणस्य पक्ष, निर्जित्य निखिशमुशाखशस्त्रैः । वामेक्षणां यो नयति क्षणेन, मोक्षं समक्षं विबुधवजस्य ॥ ६ ॥ सर्वत्र संप्राप्तजयोत्थकीत्ते, श्वेतीचकाराम्बरमेव यस्मात् । श्वेताम्बरेति प्रथितं ततो यः, पापापरं नाम जनेभिरामम् ॥ ७ ॥ एनोऽपहारिगुणवज्जनसेव्यमानः, सार्वोपदिष्टविशदोपधिशालवत्याम् । योगीन्द्रकायनिरपायनराजधान्यां, यः सन्ततं समधितिष्ठति सप्रतापः ॥८॥ जीयतां स भुवने जिनधर्मभूपः, शाखार्थ
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