Book Title: Yogsara Pravachan Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 5
________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) (मानो) बाहर में कहीं सुख, राजपाठ, बादशाहत, इन्द्र के इन्द्रासन या लक्ष्मी का बड़ा ढेर - पुञ्ज धूल का पड़ा हो (उसमें सुख) मानता है; है नहीं; सुख तो भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ तीर्थङ्करदेव ऐसा फरमाते हैं कि भाई! तेरे अस्तित्व में सुख है; दूसरे के अस्तित्व में तेरा सुख नहीं है। समझ में आया इसमें कुछ ? दूसरे के अस्तित्व में, परमात्मा -दूसरे सिद्ध भगवान हों, परन्तु उनके अस्तित्व में तेरा अस्तित्व का आनन्द वहाँ नहीं है, आहा...हा...! अभी सर्वज्ञ ऐसा बोले सही 'केवलीपण्णत्तो धम्मो सरणं' - भगवान जाने एक भी अर्थ समझे तो! बाबूभाई! है ? तुम ऐसे के ऐसे सब युवा लोगों ने ऐसे के ऐसे बिताया। ऐसा कि दूसरे होंगे इसलिए भूले परन्तु हम भूले हैं, इसलिए ऐसा कहते हैं। कहो, समझ में आया? 'केवली पण्णत्तो धम्मो सरणं' वे सर्वज्ञ परमेश्वर निज अस्ति में-त्रिकालवस्तु में अकेला अतीन्द्रिय आनन्द ही भगवान ने देखा है। इस आत्मा में, हाँ! उस अतीन्द्रिय आनन्द की नजर करके उसमें जो परिट्ठिया' (अर्थात्) विशेषरूप से ध्यान में स्थिर हुए। बाहर से अत्यन्त उपेक्षा करके अन्दर में स्थिर हुए। शुद्धध्यान में से पहला माङ्गलिक वाक्य ही यह प्रयोग किया है 'णिममलझाण परिट्ठिया जेण' । समझ में आता है ? जिन्होंने - भगवान सिद्ध हुए उन्होंने, ....जो भगवान सिद्ध हुए उन्होंने, भगवान आत्मा के शुद्धस्वरूप में लीनता का ध्यान किया, यह उसकी क्रिया! मोक्ष प्राप्त करने की, मोक्ष के मार्ग की यह क्रिया है। बीच में कोई दया, दान, व्रत का विकल्प आता है, वह कोई मोक्ष के मार्ग की क्रिया नहीं है। आहा...हा...! पहले से आचार्य ने (यह बात शुरु की है)। योगसार'... योग अर्थात् आत्मा के उपयोग में जुड़ान करना, वह मोक्ष का मार्ग है। उपयोग में जुड़ान करना, वही मोक्ष का मार्ग है। समझ में आया? पर में कहीं जुड़ान हो, रागादि व्यवहार हो परन्तु वह कहीं मोक्ष का मार्ग नहीं है। बन्ध के मार्ग के सब विकल्प हैं। भगवान आत्मा अपने आनन्द के अन्दर पहले प्रतीत में अनुभव में लिया हो, फिर उस आनन्द को पूर्ण पर्याय में प्राप्त करने के लिये जिन्होंने स्वरूप में लगनी लगाई है, ध्यान की लगन अन्दर में लगी, अन्दर में छटपटाहट लगी – ऐसे ध्यान में स्थित होते हुए... 'कम्मकलंक डहेवि' यह अब ऐसा लिया।

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