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योगकल्पलता
कथानकेषु सम्प्रोक्तं पूर्वाचार्यैः पुनः पुनः।
“भुक्तिमुक्तिप्रदो ह्येष नमस्कारो न संशयः" ।।१८।। पूर्वाचार्यों के द्वारा बार-बार कथानकों में दोहराया गया हैं कि यह नमस्कार मन्त्र निस्सन्देह भोग और मुक्ति देनेवाला है।।१८।।
सर्वाभिप्रेतसिद्ध्यर्थं दर्शितो हि गुणाधिपैः।
कन्दोऽयं सर्वधर्माणां नमस्कारोऽस्तु मे श्रिये।।१९।। तीर्थंकरों ने जिसे सभी धर्मों का मूल तथा सभी मनोवाञ्छित सिद्धि करनेवाला कहा है वह नमस्कार मेरे कल्याण के लिए हो।।१९।।।
सर्ववन्द्यो भवेद्ध्याता मन्त्रराजप्रभावतः।
तस्माद्भव्यैः सदा ध्येयो नमस्कारो मुहुर्मुहुः।।२०।। मन्त्रराज के प्रभाव से ध्यान करने वाले सभी के वन्य होते हैं, अतः भव्यों को बार-बार नमस्कार मन्त्र का ध्यान करना चाहिए।।२०।।
देवेन्द्रविभवो लोके चक्रित्वमानुषङ्गिकम्।
अचिन्त्यं हि फलं दत्ते नमस्कारो निषेवितः।।२१।। इस लोक में सेवा करने से इन्द्र के समान विभव एवं आनुसंगिक रूप में चक्रवर्ति पद ऐसे अचिन्त्य पद नमस्कार मन्त्र देता है।।२१।।
सेवितोऽयं ददात्येव पदं लोकोत्तरं ध्रुवम्।
तस्मादेव हृदि ध्येयो नमस्कारो दिवानिशम्।।२२।। इसकी सेवा करने से यह निश्चित ही लोकोत्तर पद (मोक्ष) देता है। इसलिए रातदिन नमस्कार मन्त्र का हृदय में ध्यान करना चाहिए।।२२।।
यस्मादध्यात्मविद्यानां सर्वासामुद्गमो मतः।
भव्यैस्तु सेवनीयः स नमस्कारो मुदा सदा।।२३।। जिससे (जिसके सेवनसे) सभी अध्यात्म विद्याओं की उत्पत्ति हुई है, भव्यों को सतत प्रसन्नता पूर्वक उस महामन्त्र का सेवन करना चाहिए।।२३।।