Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 16
________________ नमस्कारस्तुतिः पञ्चबीजमयो मन्त्रः पञ्चतत्त्वसमन्वितः। पञ्चबाणविनाशाय नमस्कारोऽत्र सूचितः । । १२ ।। पञ्च तत्त्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश ) का समन्वय तथा पाँच बीज (ह्राँ ह्रीँ हूँ ह्रौं ह्रः) वाला यह नमस्कार मन्त्र काम को नाश करता है ।। १२ ।। पञ्चवर्णमयो मन्त्रः पद्मे त्वष्टदलात्मके। ध्यायते कर्मनाशाय नमस्कारो बुधैः सदा ।।१३।। यह मन्त्र पाँच वर्णवाला है पंडित लोक अपने कर्मों के क्षय के लिए इसे अष्टदल कमल पर ध्यान करते हैं ।। १३ ।। अष्टसिद्धिप्रदो ह्येष चाष्टकर्मविनाशकः । सम्पदष्टकसंयुक्तो नमस्कारो निरूपितः ।।१४।। आठ प्रकार की सिद्धियों को देनेवाला आठ प्रकार के कर्मों का क्षय करनेवाला आठ प्रकार की सम्पत्तियों से युक्त नमस्कार मन्त्र को कहा गया है।।१४।। नवपदात्मको ज्ञेयस्तथा नवरसात्मकः । ग्रहान्वितो विनिर्दिष्टो नमस्कारो निधिप्रदः ।। १५ ।। ३ इस को नौ पदवाला, नौ रसवाला तथा नौ ग्रहों से युक्त जानना चाहिए (अर्थात् सम्पूर्ण चराचर जगत् ) इस नमस्कार मन्त्र को नवों निधि का प्रदाता कहा गया है ।। १५ ।। बिन्दूनां नवके चित्तं स्वयमेव विलीयते । अतिसूक्ष्मो यदा मन्त्रो नमस्कारो भवेत्तदा । । १६ ।। ध्यान की स्थिति में जब नमस्कार मन्त्र अति सूक्ष्म हो जाता है तब यह चित्त में स्वयं ही लीन हो जाता है ।। १६ ।। नैष साधारणो मन्त्रः सर्वमन्त्रशिरोमणिः । निष्प्रतिमप्रभावोऽयं नमस्कारो विलोक्यते । । १७।। यह कोई साधारण मन्त्र नहीं है। यह मन्त्रों का राजा है। इस नमस्कार का अद्वितीय प्रभाव देखा जाता है।।१७।।

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