Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 55
________________ योगकल्पलता भावनाज्ञान से चित्त की एकाग्रता होती है तदनन्तर सम्यक् प्रकार से ब्रह्माभ्यास होता है। ये सब निश्चित ही नमस्कार महामन्त्र से होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।२९।। भावना विपरीता या देहादौ ह्यात्मधीः खलु। सा तु नश्यति सध्यानान्नमस्कारान्न संशयः।।३०।। 'शरीर ही आत्मा है' यह बुद्धि विपरीत भावना है। नमस्कार महामन्त्र के द्वारा सद्ध्यान से उसका नाश होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।३०।। देहादिभ्यो विभिन्नोऽयमात्मेति भासते स्फुटम्। प्रत्यहं जपयोगेन नमस्कारान्न संशयः।।३१।। आत्मा शरीरादि से भिन्न है ऐसा प्रगट अवभास प्रतिदिन के नमस्कार महामन्त्र के जप से होता है।।३१।। कुरुते यो जपं नित्यं विना स्वर्गादिवाञ्छया। मुच्यते स हि पापेभ्यो नमस्कारान्न संशयः।।३२।। जो कोई नमस्कार मन्त्र का जप प्रतिदिन स्वर्गादि इच्छा से रहित भाव से करता है वह अवश्य सभी पापों से मुक्त होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।३२।। ज्ञानगर्भितवैराग्यमन्तवृत्तिर्भवेत्तथा। निजानन्दानुसन्धानं नमस्कारान्न संशयः।।३३।। नमस्कार मन्त्र से मन में ज्ञान गर्भित वैराग्य की भावना उठती है तथा साधक परमानन्द का अनुसंधान कर पाता है इसमें कोई संदेह नहीं।।।३३।। कामक्रोधादिशत्रूणां भवेदुन्मूलनं तथा। भवहेतुविनाशोऽपि नमस्कारान्न संशयः।।३४॥ नमस्कार महामन्त्र से काम-क्रोध आदि शत्रुओं का मूल से नाश होता है और भव का कारण भी नष्ट होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।३४।। मुमुक्षुः साधको नित्यं चिदानन्देऽतितत्परः। जहाति हर्षशोकादीन्नमस्कारान्न संशयः।।३५।।

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