Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ आशाप्रेमस्तुतिः (आह्लादक) कांतिवाली हो, सचमुच (तुम) मेरे हृदय में निश्चित ही लीन होकर एकात्म हो गयी हो। ||२३|| आशे ! ते परमं प्रेम संवीक्ष्य विस्मितस्सदा । ध्यायामि त्वामहं चित्ते सङ्गमस्ते भवेद्यथा ।।२४।। मैं हे आशे ! तुम्हारे उत्कट प्रेम को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया, ध्यान करता हूँ, जिससे मन में तुम्हारा साथ सतत रहे। ।।२४।। आशे ! तेऽनुनयं कुर्वे वचनैः प्रेमगर्भितैः । परिरम्भादिदानेन रमस्व त्वं समं मया ।। २५ ।। आशे! स्मृत्वा विलासाँस्ते तव ध्यानेऽतितत्परः। परां शान्तिमहं यामि विलीनकरणाशयः । । २६ ॥ हे आशे ! प्रेमभरे वचनों से मैं तुम्हारी प्रार्थना करता हूँ, कि तुम आलिंगन करते हुये मेरे साथ रमण करो। ।। २५ ।। ९३ त्वत्प्राणस्त्वन्मना आशे! निमील्य मे विलोचने । ध्यानयोगेन पश्यामि त्वामेवोपागतामिव ।।२७।। हे आशे! तुम्हारे ध्यान में लीन होने पर तुम्हारे हाव-भाव को याद करके विचारों में खोकर मैं परमशान्ति प्राप्त करता हूँ। ।।२६।। तुम्हारा आशे! प्रसन्नचित्तोऽहं वचनैस्ते नयान्वितैः। जानामि त्वत्प्रसादेन प्रेमरीतिं मनोहराम्।।२८।। हे आशे ! तुम ही मेरा प्राण एवं मन हो, आँखे बन्द करके ध्यानयोग से देखता हूँ कि तुम मेरे पास आयी हो। ।। २७ ।। आशे ! त्वत्प्रेम संवीक्ष्य ज्ञात्वा वै चरितं शुभम् । आत्मानन्दरसे लीनं मनो मे जायते क्षणात् ।।२९।। हे आशे ! तुम्हारी नीतिपूर्ण बातों से मेरा मन प्रसन्न है तथा तुम्हारी कृपा से मैं प्रेम की मनोहर रीति को जानता हूँ। ।।२८।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145