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[१०] काष्ठा तक पहुंचानेका श्रेय बहुधा भारतवर्षको और आर्यजातिको ही है। इस बातकी पुष्टि मेक्षमूलर जैसे विदेशीय और भिन्न संस्कारी विद्वान्के कथनसे भी अच्छी तरह होती है।
__ आर्यसंस्कृतिकी जड और आर्यजातिका लक्षण--उपरके कथनसे आर्यसंस्कृतिका मूल आधार क्या है यह स्पष्ट मालूम हो जाता है। शाश्वत जीवनकी उपादेयता ही आर्यसंस्कृतिकी भित्ति है। इसी पर आर्यसंस्कृतिके चित्रोंका चित्रण किया गया है। वर्णविभाग जैसा सामाजिक संगठन और आश्रमव्यवस्था जैसा वैयक्तिक जीवनविभाग उस चित्रणका अनुपम उदाहरण है। विद्या, रक्षण, विनिमय और सेवा ये चार जो वर्णविभागके उद्देश्य हैं । उनके प्रवाह गार्हस्थ्य जीवनरूप मैदानमें अलग अलग बह कर भी वानप्रस्थके मुहानेमें मिलकर अंतमें संन्यासाश्रमके अपरिमेय समुद्रमें एकरूप हो जाते हैं। सारांश यह है कि सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि सभी संस्कतियोंका निर्माण, स्थलजीवनकी परिणामविरसता और श्रा
१ This concentration of thought (एकाग्रता) or one-pointedness as the Hindus called it, is something to us almost unknown. इत्यादि देखो पृ.२३वोल्युम १-सेक्रेड बुक्स ओफ धि ईस्ट मेक्षमूलर-प्रस्तावना.