Book Title: Yogdarshan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlal Sanghavi

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Page 208
________________ [१२१] गाथा १०-जब कोई श्रद्धावाला व्यक्ति 'अरिहंत चेइयाणं करोमि काउस्सग्गं ' इत्यादि चैत्यवंदन सूत्रका यथाविधि (शुद्ध) उच्चारण करता है तब उसको शुद्ध उच्चारणसे चैत्यवंदनसूत्रके पदोंका यथार्थ ज्ञान होता है। खुलासा-स्वर, संपदो और मात्रौ आदिके नियमसे शुद्ध वर्णोंका स्पष्ट उच्चारण करना यह यथाविधि उच्चारण अर्थात् वर्णयोग है। वर्णयोगका फल यथार्थ पदज्ञान है, अतएव जब चैत्यवन्दन सूत्र पढ़ते समय वर्णयोग हो तभी सूत्रके पदोंका ज्ञान यथार्थ हो सकता है। गाथा ११-यह यथार्थ पदज्ञान अर्थ तथा आलंबन योगवालेके लिए बहुत कर अविपरीत (साक्षात् मोक्ष देनेवाला) होता है और अर्थ तथा आलम्बन-योगरहित किन्तु स्थान तथा वर्ण योगवालेके लिए केवल श्रेय (परम्परासे मोन देनेवाला) होता है। खुलासा-जो अनुष्ठान मोक्षको देनेवाला हो वह सदनुष्ठान है । सदनुष्ठान दो प्रकारका है, पहला शीघ्र (साक्षात्) मोक्ष देनेवाला, दूसरा विलंबसे (परम्परासे) मोक्ष देनेवाला । पहलेको अमृतानुष्ठान और दूसरेको तद्धेतु-अनुष्ठान कहते हैं। ११ उदात्त, अनुदात्त, स्वरित । २ विश्रान्तिस्थान | ३ हस्व, दीर्घ, प्लुत ।

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