Book Title: Yogdarshan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlal Sanghavi

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Page 218
________________ [१३१] ज्ञानसारके जो श्लोक टीकामें उद्धृत किये गये हैं वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए उनमें से कुछका सार दिया जाता है। यदि लोगोंपर भरोसा रख कर ही कर्तव्यका निश्चय किया जाय अर्थात् जो बहुतोंने किया वही ठीक है ऐसा मान लिया जाय तो फिर मिथ्यात्व त्याज्य नहीं समझा जाना चाहिए. क्योंकि उसका सेवन अनेक लोक अनादि कालसे करते आये हैं। ___ अनार्योंसे आर्य थोड़े हैं, आर्योंमें भी जैनोंकी अर्थात् समभाववालोंकी संख्या कम है । जैनोंमें भी शुद्ध श्रद्धावाले कम, और उनमें भी शुद्ध चारित्रवाले कम हैं। ___ व्यवहार हो या परमार्थ, सब जगह उच्च वस्तुके अधिकारी कम ही होते हैं, उदाहरणार्थ-जैसे रत्नोंके परीक्षक ( जौहरी) कम, वैसे आत्मपरीक्षक भी कम ही होते हैं । शास्त्रानुसार वर्तन करनेवाला एक भी व्यक्ति हो तो वह महाजन ही है। अनेक लोग भी अगर अज्ञानी हैं तो वे सब मिल कर भी अन्धोंके समूहकी तरह वस्तुको यथार्थ नहीं जान सकते। संविग्न ( भवभीर ) पुरुषने जिसका आचरण किया हो, जो शास्त्रसे बाधित न हो और जो परम्परासे भी शुद्ध हो वही जीतव्यवहार है।

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