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[ ५४ ] इनन, केवली, कुशल, ज्ञानावरणीय कर्म, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सर्वज्ञ, क्षीणक्लेश, चरमंदेह आदि ।
२ प्रसुप्त, तनु श्रदिक्केशावस्था, पाँच यम, योगज - : १ योगसूत्र (२-२७) भाष्य, तन्त्रार्थ (अ० ६- १४ ) । · २ देखो योगसूत्र ( २-२७ ) भाष्य, तथा दशवैकालिकनिर्युक्ति गाथा १८६ |
३ देखो योगसूत्र ( २ - ५१ ) भाष्य, तथा आवश्यकनिर्युक्ति गाथा ८६३ |
४ योगसूत्र ( २ - २८) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० १-१ ) । ५ योगसूत्र (४-१५) भाष्य, तत्त्वार्थ (अ० १-२ ) ॥ ६ योगसूत्र ( ३ - ४९ ) भाष्य, तत्त्वार्थ ( ३ - ४९ ) । ७ योगसूत्र (१ - ४) भाष्य । जैन शास्त्र में बहुधा क्षीणमोह ' ' क्षीणकषाय' शब्द मिलते हैं। देखो तत्त्वार्थ (
० ९ - ३८ ) ।
८ योगसूत्र ( २-४) भाष्य, तत्त्वार्थ ( ० २-५२ ) । ६ प्रसुप्त, तनु, विच्छिन्न और उदार इन चार अवस्थाओं का योगसूत्र ( २-४ ) में वर्णन है । जैनशास्त्र में वही भाव मोहनीयकर्मकी सत्ता, उपशसक्षयोपशम, विरोधिप्रकृतिके उदयादिकृत व्यवधान और उदयावस्था के वर्णनरूपसे वर्तमान है । देखो योगसूत्र ( २-४ ) की यशोविजयकृत वृत्ति ।
१० पहुँच यमों का वर्णन महाभारत आदि ग्रन्थो में है सही, पर