Book Title: Yogdarshan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlal Sanghavi

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Page 205
________________ [११८] सीनों योगमें ही समझना चाहिये । ध्यानका समावेश आलंबन योगमें है और समता तथा वृत्तिसंक्षयका समावेश अनालंबन योगमें होता है ।। __ स्थान आदि योगके भेद दिखाते हैं ‘गाथा ४-उक्त स्थान आदि प्रत्येक योग तत्वदृष्टिसे चार चार प्रकारका है । ये चार प्रकार शास्त्रमें ये हैं-इच्छा, प्रवृत्ति, स्थिरता और सिद्धि ॥ उक्त इच्छा आदि भेदोंका स्वरूप बतलाते हैं गाथा ५, ६-जिस दशामें स्थान आदि योगवालोंकी कथा सुन कर प्रीति होती हो और जिसमें विधिपूर्वक अनुष्ठान करनेवालोंके प्रति बहुमानके साथ उल्लासभरे विविध प्रकारके सुंदर परिणाम अर्थात् भाव पैदा होते हों वह योगकी दशा इच्छा-योग है। प्रवृत्तियोग वह कहलाता है जिसमें सब अवस्थामं उपशमभावपूर्वक स्थान प्रादि योगका पालन हो ।। जिस उपशमप्रधान स्थान आदि योगके पालनमें अर्थात् प्रवृत्तिम योगके वाधक कारणोंकी चिंता न हो वह स्थिरता योग है। स्थानादि सब अनुष्ठान दूसरोंका भी हितसाधक हो तब वह सिद्धियोग है ।। खुलासा-हर एक योगकी चार अवस्थायें होती हैं, जो क्रमशः इच्छा, प्रवृत्ति, स्थिरता और सिद्धियोग कहलाते है। (१) जिस अवस्थामें द्रव्य, क्षेत्र आदि अनुकूल

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