Book Title: Vyavaharsutram Bruhatkalpasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पत्कल्पस्ने निर्ग्रन्थी मदविवला भवति, रसपुलाके मुक्तेऽजीर्णादिरोगसंभवः, ततः सूत्रार्थस्वाध्यायादिपरिमन्थस्तेन संयमविराधना, वातप्रकोपादिना आत्मविराधना च स्पष्टैवेति मुक्तपुलाकभत्ता द्वितीयवारं गृहस्थगृहे भिक्षार्थं न प्रविशेदिति सूत्राशयः ॥ सू०५२ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगवल्लभ -प्रसिद्धवाचक--पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालाएकप्रविशुद्धगधपयनंकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दफ- श्रीशाहूछत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त"जैनाचार्य" पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालग्रामचारि - जैनाचार्य-जैनधर्म-दिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालबतिविरचितायांवृहल्कल्पसूत्रस्य"
चूर्णि-माझ्या-ऽवचूरीरूपायां व्याख्यायां
पश्चमोदेशकः समाप्तः ॥५॥
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