Book Title: Vyavaharsutram Bruhatkalpasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 497
________________ नो कप्पइ निगंधीणं आवणगि हंसि वा रत्थामुहंसि बा, सिंघाडगंसि वा चउक्कसि वा चच्चरंसि वा अंतरावणं सि वा वत्थए ॥१२॥ कप्पइ निग्गंथाणं आवणगिसि वा जाव अंतरावणंसि वा वत्यए ॥१३।। नो कप्पइ निग्गंथीणं अयंगुयधारिए उवस्सए वत्थए । एगं पत्थारं अंतो फिच्चा एगे पन्यारं बाहि किच्चा ओहाडियचिलिमिछियागसि एवं णं कप्पइ क्त्पए ॥१४॥ कप्पइ निमांथाणं अवंगुयदुवारिए उबस्सए वत्थए ॥१५|| कप्पइ निग्गंधीणं अंतोलिनं घडि भत्तयं धारित्तए या परिहरिनए वा ॥१६|| नो कप्पइ निग्गंयाणं अंतोलितं घडिमत्तयं धारित्तए चा परिहरिनए वा ॥१७॥ कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधी वा चलचिलिमेलिय परिसए का, परिधरिए था। नो कप्पइ निग्गंथाण निग्गंथीण वा दगतीरंसि चिहित्तए वा निसीइत्तए वा, तुपहित्तए वा निदाइत्तए था, पयलाइत्तए चा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अहरितए, उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा परिदृवित्तए, सायं वा करित्तए, धम्मजागरिय वा जागरितए, काउसमग्गं वाकरित्तए, ठाणं वा ठाइचए॥१९॥ नो कप्पड़ निग्गथाण घा निग्गीण धा सचिञ्चकम्मे उवस्सप वस्यए ||२०|| कप्पा निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा अचित्तकम्मे उपस्सए वत्थर ॥२१॥ नो कप्पइ निर्गयीणं सागारियअणिस्साए वत्थए ॥२२॥ कप्पइ निग्गंधीणं सागारियणिस्साए वत्यए ॥२३॥ कप्पइ निग्गंधाण सागारियस्स णिस्साए वा पणिस्साए षा वत्थर ॥२४॥ नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंधीणं वा सागारियउवस्सए पत्थए ॥२५॥ कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा अप्पसागारिए उबस्सए वत्थए ॥२६॥ नो कप्पइ निग्गंथाणं इत्थीसागारिए उनस्सए वत्थए ॥२७॥ कप्पइ निग्गंयाणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थर ॥२८॥ नो कप्पइ निम्नथीणं पुरिससागारिए उवस्सए बथए ॥२९॥ कप्पइ निम्गंधीणं इत्थीसागारिए उबस्सप वस्थए ।॥३०॥ नो कप्पड निरगंथाणं पडिबद्धसिज्जाए वत्थए ॥३१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518