Book Title: Vyavahar Sutra Pithika
Author(s): Malaygiri
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie तृतीयो विभाग। श्री व्यवहारसूत्रस्य पीठिका नंतरः। // 13 // रूपेषु / तथा चाहसूयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / पुरिसा कयवित्तिया वसंति सामंतनगरेस॥ सूयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / महिला कय वित्तीया वसंति सामंतनगरेसु // इदं गाथाद्वयमपि पूर्ववद्यथा च परराज्येषु परनगरेषु च पुरुषाखयश्च वसन्ति तथा निजराज्ये निजनगरे अन्तःपुरे च / / तथाचाहसूयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / पुरिसा कय वित्तीया वसंति निययंमि रजमि॥ सूयग तहाणुसूयग, पडिसूयग सव्वसूयगा चेव; महिला कय वित्तिया, वसंति निययंमि रजमि सयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / पुरिसा कय वित्तीया वसंति निययंमि नगरंमि॥ सूयग तहाणुसूयग, पडिस्यग सवस्यगा चेव महिला कय वित्तीया, वसंति निययंमि नगरंमि सुयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / पुरिसा कय वित्तीया वसंति अंतेउरे रखो॥ सूयग तहाणुसूयग पडिसूयग सव्वसूयगा चेव / महिला कय वित्तीया वसंति अंतेउरे रमो॥ गाथा षट्कस्यापि व्याख्या पूर्ववत् / तत एवं निजचारपुरुषमहिलाम्यो राज्ञःपुरोधसश्च निशिवृत्तममात्यो जातवान् / तदेवं राज्ञोऽपि यः शिक्षाप्रदानेऽधिकारी सोऽमात्य इति उक्तममात्यस्य स्वरूपम् // मधुना कुमारस्याह // 13 // For Private and Personal Use Only

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