Book Title: Vissthanakno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ श्री आदिनाथाय नमः॥ अथ श्रीजिनहर्पजी कृत वीशस्थानकनो रास प्रारंभः। ॥दोहा॥ सकलसिदिसंपति करण, हरण तिमिर अज्ञान॥त्रणे कालना जिन नमुं,गाणी नाव प्रधान ॥१॥ महाविदेहें विचरता, वंदूं जिनवर वीश ॥ संघ चतुर्विध आगलें, धर्म कहे जगदीश ॥२॥ Balनमतां नवनिधि पामियें, जपतां पातक जाय॥प्रजंतां शिवपद दिये, खांम तणी खलन्याय॥३॥ श्रीजिनपद प्राप्ति नणी, हवू तप नचाहि॥ वीश स्थानक नामें का, श्रीजिनागममांहि ॥४॥ valचार नेद जिनधर्मना, दान शील तप नाव, सुखाराम अमृत जलद, नव दुःख सायर नाव ॥५॥ ढाल पहेली चोपाश्नी देशी॥ | दान सुपात्रे निर्मल शील, तप अनेक शुन्न नावन लील, नव समुश्प्रवहण नपदिस्या, चार धरम नवियण मन वस्या ॥१॥ दान तणा नाख्या त्रण नेद, अन्नय दान ए जारा नमेद, धर्मो पग्रह दान तृतीय, जिनवर एद कह्या हित जीय ॥२॥ ब्रह्मन्नेद अष्टादश धार, सर्वधर्ममाहे शिरदार, बाह्य अन्यंतर शोचीजोय, तपना नेद कह्या एमदोय॥३॥ नत्तम मन धरीय परिणाम, सत्यक्रिया स्वाध्याय सुगम,नाव धरम माहे परधान, नावें बहफल होय निदान॥धादानशील तप जप अनुष्ठान,नाव विना निष्फल बहुमान,शाल दाल नोजन बहुति, लवण विना निस्वादजहुँति |तप अनेक जिनशासन मांदि, तेह प्रसिद्ध कडा जिनराहि, पण एवीशथानक समकोय, तप नही Jain Educ a tional For Personal and Private Use Only www.Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 278