________________
धवलमें बुद्धिमानोंने गृहका आरंभ कहा है॥३२॥ सब वर्गों को सूर्यकी शुद्धि कही है दशाका स्वामो ओर वर्गका स्वामो बलहीन होय॥ ३३॥पीडित
नक्ष पर सूर्य होय तो कदाचित गृहका आरंभ न करें. जन्मके सूर्यमें उदरका रोग, दूसरेमें अर्थका नाश ॥ ३४ ॥ तीसरेमें धनका लाभ, चौथै धु भयका दाता होताहै, पांचवेमें पुत्र का नाश, छठेमें शत्रुका नाश ॥ ३५ ॥ सातवें में स्त्रीको कष्ट, आठवेंमें मृत्यु, नववेमें धर्मका नाश, दशमें! कर्मका योग होताहै ॥३६॥ ग्यारहवेंमें लक्ष्मी होती है और बारहवेमें धनका नाश होताह पांचवें दूसरे द्यून ( सातवें ) और नौमें सूर्य होय सर्वेषामपि वर्णानां रविशुद्धिर्विधीयते । दशापतौ हीनबले वर्णनाथे तथैव च॥३शापीडितक्षगत सूर्य न विदध्यात्कदाचन । प्रथमे कोष्टरोगं च द्वितीये चार्थनाशनम् ॥३४॥ तृतीये धनलाभं च चतुर्थे भयदो रविः । पञ्चमे पुत्रनाशाय शत्रुनाशाय शत्रुगे ॥३९॥ स्त्रीकष्टं सप्तमे सूयें मृत्युश्चाष्टमगेहगे । नवमे धर्मनाशाय दशमे कर्मसंयुतिः॥ ३६ ॥ एकादशे भवेल्लक्ष्मीदशे च धनक्षयः । पुत्रे द्वितीये चूने च धर्मे मध्यवलो रविः ॥ ३७॥ द्वितीयपुत्राङ्कगतो विश्वाहात्परतः शुभः । अस्तगा नीचराशिस्थाः परराशी परैर्जिताः ॥ ३८ ॥ वृद्धस्था बालभावस्था वक्रगाश्चातिचारगाः । रिपुदृष्टिवशं याता उल्कापातेन दूषिताः ॥ ३९॥ न फलन्ति
ग्रहा गेहप्रारंभे तान्प्रपूजयेत् । स्वामिहस्तप्रमाणेन ज्येष्ठ पत्नीकरेण च ॥ ४० ॥ धूतो मध्यवली हातोह ॥ ३७॥ दूसरे पांचवें नववे स्थानका सूर्य त्रयोदश (१३) दिनसे परे शुभ कहा है अस्तहुए और नीच राशिके और पर ॥
राशिके और अन्य ग्रहोंके जीतेहुए ॥ ३८ ॥ बद्धअवस्थामें और बाल अवस्था स्थितहर वक्री और अतिचारी और शत्रुकी दृष्टिके वशमा प्राप्तहुए और उल्काके पातसे दूषित जो ग्रह हैं ॥ ३९ ॥ वे गृहके आरंभमें फल नहीं देत इससे उनका गृहके आरंभमें भली प्रकार पूजन करे||
-
-