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वि. भ. ।। ७६ ।।
शके समय से निर्गम (यात्रा) कोभी कदाचित न करे ॥ १२ ॥ यदि एकही दिनमें राजाका प्रवेश और गमन होय तौ प्रवेश के समय की शुद्धिको न विचारै यात्राकी शुद्धिको विचारे ॥ १३ ॥ ग्रहके प्रारम्भके जो दिन मास नक्षत्र वार हैं उनमें ही गृहप्रवेश करे. गृहमें उत्तरायणके विषे प्रवेश करे और तृणके घर में तो सदैव प्रवेश करे ॥ १४ ॥ कुलीर ( कर्क ) कन्या कुम्भ इनके सूर्यमें घर ग्राम नगर और पत्तन ( शहर वा जिला ) इनमें प्रवेश न करे ॥ १५ ॥ मृदु ध्रुव ( मृग चित्रा अनु० रे० उ० ३ रो० ) संज्ञक नक्षत्रोंमें नवीन घरका प्रवेश शुभदायी होता है। दिवसे राज्ञः प्रवेशो निर्गमस्तथा । तदा प्रावेशिकं चिन्त्यं बुधैर्नैव तु यात्रिकम् ॥ १३ ॥ गृहारम्भदिने मासे धिष्ण्ये वारे विशेहम् । विशेत्सौम्यायने हर्म्य तृणागारं तु सर्वदा ||१४|| कुलीरकन्यकाकुंभे दिनेशेन विशेद्गृहम् । ग्रामं वा नगरं वापि पत्तनं वा तथैव च ॥ १५ ॥ मृदुध्रुव शुभदं नववेश्मप्रवेशनम् । पुष्यस्वातीयुतैस्तैश्च जीर्णे स्याद्वासवद्वये ॥ १६ ॥ क्षिप्रैश्वरेश्व नक्षत्रैर्नवेश्मप्रवेशनम् । न कुर्यादुग्रनक्षत्रदारुणैर्वा कदाचन ॥ १७ ॥ उयो हन्ति गृहपति दारुणेषु कुमारकम् । द्विदैव भे पत्निनाशमग्निभे त्वग्निजं भयम् ॥ १८ ॥ प्रवेशनं द्वारभैः स्यादन्यदिकस्थैर्न कारयेत् । रिक्तातिथिं भौमवारं शनिं वा नैव कारयेत् । केचिच्छनिं प्रशंसन्ति चौरभीतिस्तु जायते ॥ १९ ॥
और पुष्य स्वाती और धनिष्ठा शतभिषासे युक्त पूर्वोक्त नक्षत्रों में जीर्ण (पुराने ) घरमें प्रवेश शुभ होता है ॥ १६ ॥ क्षिप्रसंज्ञक और पुनर्वसु स्वाती श्रवण धनिष्ठा भरणी पूर्वाषाढा पूर्वाभाद्रपदा और दारुण संज्ञक नक्षत्रों में नवीन गृहमें प्रवेशको कदाचित् न करे ॥ १७ ॥ उम्र नाम नक्षत्र घरके स्वामीको और दारुण नक्षत्र बालकको और विशाखा नक्षत्र स्त्रीके नाशको करता है. कृत्तिका नक्षत्रमें प्रवेश करे तो अग्निसे ७ ॥ ७६ ॥ भय होता है ॥ १८ ॥ द्वारके जो नक्षत्र हैं उनमें ही प्रवेश होता है अन्य दिशामें स्थित नक्षत्रों में प्रवेश कदापि न करे और रिक्तातिथि भौम
भा. टी.
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