Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 182
________________ भा. टी. अ.१२ वर्तमान पट्टिकाओंसे बनाई हो ऐसी शिलाको बनवावे ॥ ३७ ॥ उतने ही प्रमाणकी आधारशिलाको विधानका ज्ञाता बनवाकर उसके मस्तकको नन्दामें कहा है, और भद्रा नामकी शिलामें दक्षिण हाथ कहा है ॥३८॥ उसके वाम करमें रिक्ता कही है जयामें उसके चरण कहे हैं, नाभिदेशमें पूर्णा जाननी, उसका संपूर्ण अंग वास्तुपुरुषरूप है ॥ ३९॥ संपूर्ण देवस्वरूप वास्तुपुरुष सबको शुभकारी होता है बुद्धि मान् मनुष्य मध्यप्रदेशमें तिस एक शिलाका स्थापन करवावे ॥ १०॥ घरके मध्यभागमें चारों तरफसे नाभिमात्र गर्त (गड्ढा ) को करके तावत्प्रमाणामाधारशिलां कृत्वा विधानवित् । नन्दायां मस्तकं प्रोक्तं भद्रायां दक्षिणः करः॥३८॥ रिक्ता वामकरे प्रोक्ता जयायां चरणौ तथा । नाभिदेशे तथा पूर्णा सर्वागे वास्तुपुरुषः॥ ३९ ॥ सर्वदेवमयः पुंसां सर्वेषां शोभनो भवेत् । तस्मा न्मध्ये प्रदेशे तु शिलैकां स्थापयेदवुधः ॥ ४० ॥ गृहमध्ये नाभिमात्रं कृत्वा गत समन्ततः। शिलामध्ये लिखेद्यत्र स्वस्ति काख्यं सुशोभनम् ॥४१ ॥ खनित्वा स्थपतिस्तस्मिंत्रिभागान्कारयेदबुधः। तन्मध्ये स्वस्तिकाकारां कारयेच्च समन्ततः ॥४२॥ ईशानादिचतुष्कोणे शिलां संपूज्य वेदवित् । ईशानकोणे नन्दायाः पूजनश्चैव कारयेत् ॥४३॥ आग्रेयकोणे भद्रां तु नैर्ऋत्ये च जयां तथा । रिक्तां वायव्यदिक्कोणे पूर्णा स्वस्तिकमध्यतः॥४४॥ शिलाके मध्यमें स्वस्तिक नामके शोभन यन्त्रको लिखे ॥४१॥ खोदकर उसमें बुद्धिमान् स्थपित ( कारीगर ) तीन भागको करे. उसके मध्यमें चारों तरफ स्वस्तिकके आकारको करे ॥ ४२ ॥ ईशान आदि चारों कोणोंमें वेदका वेत्ता ( ज्ञाता) शिलाको भलीप्रकार पूजन कर ईशान कोणमें नन्दाके पूजनको करे ॥ ४३ ॥ अग्निकोणमें भद्राका, नैर्ऋत्य कोणमें जयाका, वायव्यकोणमें रिक्ताका, स्वस्तिकके मध्य में

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