Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 190
________________ वि.प्र. ॥९४ ॥ कहा है और इससे न्यून वा अधिक जिसकी ऊंचाई हो वह विस्तार रोग भयको करता है ॥१६॥ त्रिकोण जो घर है वह धनसे हीन शीघ्र ही होता है, दीर्घ (लम्बा) घर निरर्थक होता है, इसके अनन्तर अन्यभी बाह्य देशमें स्थित दश प्रकारके वेधोंको कहता हूं ॥ १७ ॥ कोण दृक छिद्र छाया ऋतु वंश अग्र भूमि संघातका दाता जो उन दोनोंका हों ये बाह्यके दश वेध कहे हैं ॥१८॥ जिस घरकी कोणके अग्र भागमें अन्य घर हो वा जिसके कोणके संमुख अन्य कोण हो और तैसेही घरके अर्द्ध भागसे मिली हुई अन्य घरकी कोण होय तो वह घर शुभका दाता त्रिकोणं निधनं शीघ्रं गृहं दीर्घ निरर्थकम् । अथान्यान्दशवेधांश्च कथयामि बदिःस्थितान् ॥ १७॥ कोणदृक्छिदृक्छायाऋजु वंशाअभूमिकाः । संघातदन्तयोश्चैव भेदाश्च दशधा स्मृताः॥ १८॥ कोणाग्रे वान्यगेहे च कोणाकोणान्तरं पुरः। तथा गृहार्ध - संलग्नं कोणं न शुभदं स्मृतम् ॥१९॥ कोणवेधे भवद्याधिर्धननाशोऽरिविग्रहः । एकं प्रधानद्वारस्याभिमुखेऽन्यत्प्रधानकम् ॥२०॥ द्वारं गृहाच द्विगुणं तादृग्वेधः प्रचक्षते । दृष्टिवेधे भवेन्नाशो धनस्य मरणं ध्रुवम् ॥ २१ ॥ समक्षुरं क्षुद्रवेधे पशुहानिकरं परम् । द्वितीये तृतीये यामेछाया यत्र पतेद्गृहे॥२२॥छायावेधं तु तद्नेहं रोगदं पशुहानिदम् ।आदौ पूर्वोत्तरा पंक्तिः पश्चादक्षिणपश्चिमे॥२३॥ नहीं होता है ॥ १९॥ कोणवेधघरमें व्याधि होती है, धनका नाश और शत्रुओंके संग विग्रह होता है, प्रधान एक द्वारके संमुख प्रधान अन्य घरका द्वार हो ॥२०॥ घरसे दूना द्वार हो उसको भी गृहवेध कहते हैं दृष्टिवेधौ धनका नाश और निश्चयसे मरण होता है ॥ २१ ॥ समान क्षुद्र (छोटा) जो घर है वह क्षुद्रवेध होनेपर अत्यन्त पशुहानियोंको करता है, जिस घरमें दूसरे वा तीसरे पहरमें अन्य घरकी छाया पडे ॥२२॥ छायावेधका बह घर है. वह घर रोग और पशु हानिको देता है और जिस घरमें पहिली गृहॉकी पंक्ति पर्व उत्तरको हो और पिछली पंक्ति । Aal ... ॥ ९ ॥ LOR

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