Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 171
________________ प्रतोली बनवावे. उसमें शकलीयन्त्रोंसे अर्थात् छिद्रोंसे मंडित रमणीक यन्त्रको करवाकर ॥ १६॥ मुशल मुद्गर प्रास यन्त्र खड्न धनुर्धारी। इनसे युक्त बनवावे. शूरवीर जो योद्धा हैं उनसे संयुक्त करवावे ॥ १७ ॥ कोण २ में उन शवोंके चलाने के अंत्रपुर (छिद्र) बनवावे. उसके बाह्य देशमें परिखाका आकार कालरूप विस्तारसे बनवावे ॥ १८ ॥ मध्यमें जो समान देशहो उसमें बढे २ घर बनवावे उन घरों में वास्तु और | कोटपालका पूजन करे ॥ १९ ॥ विधिपूर्वक क्षेत्रपालका पूजन करे, यह विधि संपूर्ण दुर्गामें शास्त्रोक्तविधिसे होती है ॥ २० ॥ विषमस्थान | मुशलैर्मुद्रैः प्रासैर्यन्त्रैः खड्नेधनुर्धरैः । संयुतं सुभटैः शूरैः संयुतानि च कारयेत् ।। १७॥ तन्मोक्षोऽन्त्रपुरानोहान्कोणकोणे प्रदापयेत् । तदा। परिखाकारा कालरूपा सुविस्तरा ॥ १८॥ समे प्रदेशे मध्ये तु महागेहानि विन्यसेत् । तत्र संपूजयेद्वास्तुं कोटपालं तथैव च ॥१९॥क्षेत्रपालं च विधित्पूर्ववत्तं प्रपूजयेत् । एतद्विधानं सर्वेषु दुर्गेषु च विधानतः॥२०॥ कारयेद्विपमे स्थाने पर्वते च विशेषतः । बाह्ये च परिखा कार्या प्राकारं तस्य मध्यतः॥२१॥ तन्मध्ये च पुनर्भित्तिं भित्तिमध्ये गृहानपि । गृहाणां मध्यभागे तु परिखां नैव कारयेत् ॥ २२ ॥ पूर्ववत्कोणभागेषु गृहान्विन्यस्य पूर्ववत् । त्रिपञ्चसप्तप्राकारान् कारयेन्मध्यमध्यतः | ॥ २३ ॥ तन्मध्ये तु महापमं पूर्ववत्परिकल्पयेत् । तत्रैव स्थापयेद्वास्तुं कोटपालं तथैव च ॥ २४॥ और विशेषकर पर्वतमें भी यही विधि करे बाह्यमें परिखा करनी और उसके मध्यमें प्राकार बनवाना ॥ २१ ॥ उसके मध्यमें फिर भीत बन | वावे और भीतके मध्यमें घरोंको बनवावे, गृहोंके मध्यभागमें परिखाको न करवावे ॥ २२ ।। पूर्व के समान कोणके मार्गमें पूर्वरीतिसे गृहोंको बनवाकर मध्य २ में तीन पांच सात प्राकारोंको बनवावे ॥ २३ ॥ उनके मध्य में पूर्वके समान महापद्मकी रचना करे, उस महापद्मके

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