Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 175
________________ , फिर कोटपालकी बलिको, फिर कोटस्वामीकी बलिको दे ॥ ४७ ॥ पूरके ऊपर पशुकी बलिको दे और द्वारके आगे महिष (भैसे) की बलि | दे. एकसहस्रके प्रमाणके पहिले यमलोकको जपे ॥ ४८ ॥ विधिसे पूर्णाहुतिको देकर अपनी शक्ति के अनुसार दक्षिगाको दे फिर ब्राह्म गोंको 9 भोजन करावे. इस प्रकार करनेसे राजाकी सिद्धि होती है ॥ ४९ ॥ फिर पुरके कर्मको समाप्त करके सन्ध्याकालके सपय नेतमें विधिसे वलिको दे और पूर्वोक्त मन्त्रोंको प? ॥ ॥ मांस ओदनकी बालि दे और इस मन्त्रको पढ़े कि (ॐ हीं सर्वविज्ञान उन्लारय न न न न न न न पुरोपरि पशून्दद्याद्दाराग्रे महिपं ततः । यमश्लोकं जपेत्पूर्व सहस्रस्य प्रमाणतः॥४८॥ पूर्णा दत्त्वाथ विधिवत्स्वशक्त्या दक्षिणां चरेत् । ब्राह्मणान्भोजयेत्पश्चात्ततः सिद्धिर्भविष्यति ॥ १९ ॥ पुरकर्म ततः कृत्वा सन्ध्याकाले च नैर्ऋते । बलिं दद्याद्विधानेन मन्त्रान्पूर्वोदितान्पठेत् ॥५०॥ मांसौदनबलिं चैव मन्त्रमेतदुदीरयेत् । ॐ ह्रीं सर्वविघ्नानुत्सारय नननननन न मोहिनि स्तंभिनि मम शत्रु मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय अस्य दुर्गस्य रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ॥ बलिं दत्त्वा ह्यनेनापि कृतकृत्यो भवेन्नरः । दुष्ट ऋक्षस्य यः स्वामी तन्मन्त्रेण च कारयेत् ॥५१॥ खादिरस्य च कील तु द्वादशाकुलमानतः। मृत्युंजयेन मन्त्रेण अभिमंत्र्य सहस्रधा ॥५२॥ स्थिरलग्ने स्थिरांशे च सुलग्ने सुदिने ततः । रोपयेदुर्गमध्ये तु ततः सिद्धिर्भविष्यति ।। ५३ ॥ मोहिनि स्तंभिनि मम शत्रुन् मोहय मोहय स्तंभय स्तंभय अस्य दुर्गस्य रक्षां कुरु २ स्वाहा ) और इस मन्त्रसे भी बलिको देकर मनुष्य कृत कृत्य होता है और दुष्ट नक्षत्रका जो स्वामी है उसके मन्त्रसे भी बलि और होम करवावे ॥ ५१ ॥ बारह अंगुलके प्रमाण की जो खदिरवक्षकी कील है उसका मृत्युंजय मन्त्रसे सहस्रवार १.०० अभिमन्त्रण करके ॥५२॥ स्थिर लग्न और स्थिरलग्नके नाशकमें, शोभनदिन और

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