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इसके अनन्तर फिर शल्यज्ञानकी विधिको कहताहूं जिसके ज्ञानमात्रसे गृहका स्वामी सुबको प्राप्त होता है॥१॥ घरके प्रारंभ समयमें जिस अपने अंगमें कण्डू (खुजली ) पैदा होजाय उस अंगमें अपने देह और प्रासाद और भवन में शल्य ( दुःखको ) जाने ॥ २ ॥ जिससे शल्य सहित घर भयका दाता होता है इससे अल्प सिद्धिका दाता होता है नमस्कार करवाकर यजमानकी परीक्षा करे ॥ ३ ॥ जिस मस्तक आदि अंगका स्पर्श कर्ता ( यजमान ) करे उसकेही दुःखको दूर करता है आठ तालकी ध्वनिके भीतर नीचेके अंगका स्पर्श करे तो उस अतः परं प्रवक्ष्यामि शल्यज्ञानविधि पुनः । येन विज्ञानमात्रेण गृहेशः सुखमाप्नुयात् ॥ १॥ गृहारंभे च कंडूतिः स्वाङ्गे यत्र प्रवर्तते । शल्यमासादयेत्तत्र प्रासादे भवने तथा ॥२॥ सशल्यं भयदं यस्मादल्पसिद्धिप्रदायकम् । कारयित्वा नमस्कारं यज मानं परीक्षयेत् ॥ ३ ॥ यदंग संस्पृशेत्कर्ता मस्तकं शल्यमुद्धरेत् । अष्टतालादधस्तस्मिस्तत्र शल्यं न संशयः ॥ ४॥ नासिका स्पर्शने कर्तुस्तिोःशल्यं तदल्पकम् । स्थितं विनिश्चितं ब्रूयात्तल्लक्षणमथोच्यते ॥५॥शिरसः स्पर्शने वास्तोः सार्द्धहस्तादधः स्थिताम् । मौक्तिकं तु करत्रेण मुखस्पर्शेऽतिदेहिनः ॥६॥ वाजिदंत महाशल्यमुद्धरेत् तास्तुतन्त्रवित् । करस्पर्श करे वास्तोः
खट्वांगे च करादयः ॥७॥ अथापरमपि ज्ञानं कथयामि समासतः । पड्गुणीकृत मुत्रेण शोधयेद्धरणीतले ॥ ८॥ अंगमें शल्य होता है इसमें संशय नहीं ॥४॥ नासिकाके स्पर्शमें कर्ता और वास्तुको अल्पदुःख होता है इस मर्यादाको निश्चित कहे इसके अनंतर उसके लक्षणको कहते हैं ॥ ५ ॥ वास्तुके शिरका स्पर्श करे सार्धहाथ १॥ से नीचे शल्यको जाने. यदि मौक्तिकका स्पर्श अपने करसे. करे वा किसी देहीके मुखका स्पर्श करे ॥ ६॥ तो अधोंके दांतोंका जो दुःख है उसके उद्धार (नाश) को वास्तुतंत्रका ज्ञाता करता है हाथका स्पर्श करे तो वास्तुके हाथमें और खट्वाके अंगका स्पर्श करे तो करसे नीचेके दुःखको कहे ॥ ७॥ इसके अनंतर संक्षेपसे अन्य ज्ञानकोभी कहताहूं