Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 176
________________ वि प्र. शोभनलग्नमें दुर्गके मध्यमें रोपण करे (गाडदे) ऐसा करनेसे सिद्धि हो जाती है । ५३ ॥ सब कालमें कोटका स्वामी सुखका भागी होता है, उष्ट्रीमन्त्र यह है कि-ॐ उष्ट्रि विकृतदंष्ट्रानने ब्रुफट् स्वाहा ।। ५४ ॥ इस उष्ट्रीमन्त्रको दशसहस्र जपकर पृन मधे पुष्पोस एकसहस्र मन्त्रसे होम करै फिर मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।। ५५ ॥ द्वात्रिंशन ३२ हैं अक्षर जिसमें ऐसे यमलोकको द्वात्रिंशतसहस्र जपे फिर सिद्ध होता है ॥५६॥ तिसी प्रकार पूर्वविधिसे शत शत १०००० मन्त्रोंसे होम करे फिर सिद्ध होता है और तिस २ संघ कर्म को करना है ॥ ५७ ॥ द्वादश हैं आरे सर्वदा सुखभागी च कोटपो भवति ध्रुवम् । उष्ट्रीमन्त्रः-अह्रीं उष्ट्रि विकृतदंष्ट्रानने g फट् ॥५४॥ उष्ट्रीमन्त्रं दशसहस्राणि जपित्वा घृतमधुना पुष्पैः सहस्रमेक यजेत्ततः सिद्धो भवति ॥ ५५॥ यमलोक द्वात्रिंशाक्षरं द्वात्रिंशत्सहस्राणि जपेततः सिद्धो भवति ॥५६॥ तथा पूर्वविधिना शतशतानि होमयेत्ततः सिद्धो भवति तत्तत्सकलं कर्म करोति ॥५७॥ द्वादशारं लिखेचक्र वृत्तत्रय विधपितम् । उष्ट्रिमन्त्रश्च तद्वाह्ये यमश्लोकी च मध्यतः॥५८॥वज्रार्गलविधानन्तु कर्तव्यं दुगलक्षणे । भजने यमराजाख्यमित्युक्तं ब्रह्मयामले ॥ ५९॥ मृत्युञ्जयमंत्रः-ॐजूसः ॥ इति वास्तुशास्त्रे कोटवास्तूकरणं नाम एकादशोऽध्यायः ॥ ११॥ जिसमें ऐसे चक्रको तीन वृत्तोंसे विभूषित लिखे. उस यन्त्रके बाह्य देशमें उष्ट्रिमन्त्रको, मध्यमें यमके श्लोकोंको लिखे ॥ ५८ ॥ दुर्गकी रक्षाके लिये वजार्गलविधानको करे, भजनकर में यमराजनामके विधानको को यह ब्रह्मयामलमें कहा है ॥ ५९॥ मृत्युंजयका मन्त्र यह है कि, ॐ जसः ॥ इति पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसहिते वास्तुशखे कोटवास्तुनाम एकदशोऽध्यायः ॥ ११॥ : ८७ !

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