Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 168
________________ वि. प्र. ".. . विधिवत प्रणाम करके द्वारमार्गसे घरके विषे प्रवेश करे. गणेशजी और षोडशमातृकाओंका विशेषकर पूजन करे. घसोर्धाराका पात | कराकर ग्रहोंका पूजन करे ॥ १०॥ वास्तुनाथका पूजन करके ब्राह्मणोंका पूजन करे. फिर धनकी शक्तिके अनुसार विद्वानोंको दक्षिणा दे, गोदान और भूमिका दान विधिके अनुसार करे ॥ १.१ ॥ पुरोहित, ज्योतिषी और स्थपति इनका यथार्थ सन्तोष करके दीन अन्ध कृपण इनको दान भोजन दे॥ १०२॥ लिंगी (संन्यासी) और विशेषकर बन्धुओंके समूहको पूजै दान। और मानसे यथाविधि सन्तोष करके | प्रणम्य विधिवत्पूज्य द्वारमार्गे विशेद्गृहम् । पूजयेद्गणनाथं च मातृकां च विशेषतः । वसोधारां पातयित्वा ग्रहांश्चैव तु पूजयेत् ॥१००॥ वास्तुनाथं च संपूज्य ब्राह्मणान् पूजयेत्ततः । दक्षिणां च ततो दद्याद्विद्वद्भयो वित्तशक्तितः । गोदानं भूमिदानं च कार येच यथाविधि ॥१०१॥ पुरोहितं च दैवज्ञ स्थपतीन् परितोष्य च । दीनान्धकृपणेभ्यश्च दद्यादानं च भोजनम् ॥ १०२॥ लिंगिनं च विशेषेण बन्धुवर्ग च पूजयेत् । दानमानैश्च तान् सर्वान् परितोष्य यथाविधि ॥ १०३ ॥ भोजयेद्वन्धुवर्गाश्च स्वयं भुनीत वाग्यतः । राजा चान्तःपुरे वध्वा स्त्रीजनैश्च समन्वितः ॥ १०४ ॥ भोजयेच्छक्तितश्चान्तःपुरस्थान् स्वजनांस्ततः। विहरेच्च सुखं राजा स्वावासे भार्ययान्वितः॥१०५॥ इति श्रीवास्तुशास्त्रे गृहप्रवेशविधिप्रकरण नाम दशमोऽध्यायः॥१०॥ ॐ बन्धुओंके समूहको भोजन करावे और मौन होकर आप भोजन करे. राजा अंत:पुरमें बन्धु और स्त्रीजनोंसहित भोजन करे ॥१०॥१०॥ शक्तिके अनुसार अन्तःपुरमें स्थित स्त्रियोंको फिर स्वजनोंको भोजन करावे फिर राजा अपने घरमें भार्या सहित सुखपूर्वक विहार करे ॥ १०५ ॥ इति पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसाहते वास्तुशास्त्रे गृहप्रवेशविधिप्रकरणं नाम दशमोध्यायः ॥ १० ॥ ८३॥

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