Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 147
________________ तीन शिरके, बहुत शिरके और दूसरे वृक्षसे तोडे हुए || १३ || जो वृक्ष खीके नामसे प्रसिद्ध हैं ये पूर्वोक्त संपूर्ण वृक्ष घरके कामों में वर्जने योग्य हैं. दूधवाले वृक्ष दूधको और फलके दाता वृक्ष पुत्रोंको नष्ट करते हैं ॥ १४ ॥ कंटकी वृक्ष कलहको करता है. जिसपर काक बैठते हों वह धनका क्षय करता है. गीधोंका वृक्ष महारोगको और श्मशानके वृक्ष मरणको देते हैं ॥ १५ ॥ जिसपर बिजली गिरीहों वह बचभयको देता है. जो पवनसे दूषित हो वह वातके भयको देता है, मार्गके वृक्षसे कुलका ध्वंस होता है, पुरच्छन्नवृक्ष भयको देता है ॥ १६ ॥ कुलके स्त्रीनाम्ना ये च तरवस्ते वर्ज्या गृहकर्मणि । क्षीरिणः क्षीरनाशाय फलिनः पुत्रनाशनाः ॥ १४ ॥ कण्टकी कलहं कुर्यात्काका च्छन्नं धनक्षयम् । गृध्रवृक्षं महारोगं श्मशानस्थं मृतिप्रदम् ॥ १५ ॥ वज्रांकं वज्रभयदं वातदं वातदूषितम् । मार्गवृक्षे कुल ध्वस्तं पुरच्छन्न भयप्रदम् ॥ १६ ॥ कुल्यवृक्षे भवेन्मृत्युर्देववृक्ष धनक्षयम् । चैत्ये गृहपतेर्मृत्युर्देववृक्षे भयं भवेत् ॥ १७ ॥ अर्द्धनं विनाशाय अर्धशुष्कं धनक्षयम्। व्यंगे मृतप्रजा ज्ञेयाः कुब्जे कुजास्तथैव च ॥ १८ ॥ काणे राजभय विद्या दतिजीर्णे गृहक्षयः । त्रिशीर्षं गर्भपातः स्याद्वदुशीर्षे मृतप्रजा ॥ १९ ॥ अन्यभेदे शत्रुभयमुद्याने खे भयं तथा । वही दरिद्रत्वं पुष्पवृक्षे कुलक्षयः ॥ २० ॥ वृक्षसे मृत्यु, देववृक्षसे धनका नाश, चैत्यके वृक्षसे गृहके स्वामीकी मृत्यु, कुलदेवके वृक्षसे भय होता है ॥ १७ ॥ अर्द्धमन वृक्ष विनाशको अर्द्धशुष्क धनके नाशको करते हैं व्यंगमें प्रजा ( सन्तान ) का मरण जानना कुजमें कुब्ज संतान होती है ॥ १८ ॥ काणे वृक्षसे राजाके भयको जाने, अत्यन्त जीर्णवृक्षसे घरका क्षय होता है, तीन शिरके वृक्षसे गर्भका पात होता है और अनेक शिरके वृक्षसे संतानका मरण होता है ॥ १९ ॥ अन्यवृक्षसे जो भेदन किया हो उससे शत्रुका भय होता है, उद्यानके वृक्षसे आकाशमें भय होता है और लनाओंसे जो

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