Book Title: Vishvakarmaprakash
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 91
________________ 1 शब्दके समान हैं शब्द जिनका ॥ १५६ ॥ शीघ्रगामी पवनके समान जिनका वेग और वायुके तुल्य जिनका वेग है जिनके अनेक मुख हैं। अनेक शिर हैं और अनेक भुजाओंसे जो युक्त हैं ॥ १५७ ॥ जिनके बहुत पाद हैं और जिनके बहुत नेत्र हैं जो संपूर्ण भूषणोंसे भूषित | हैं जिनका विकट रूप है और जो मुकुटके धारी हैं और जो रत्नके धारी है ॥ १५८ ॥ जिनका कोटियों सूर्यके समान तेज है और जिनका बिजलीके समान तेज है, जिनका कपिल रंग है और अनिके समान वर्ण है ऐसे जो अनेक रूपके प्रमथ हैं ॥ १५९ ॥ वे संपूर्ण बलिको द्रुतगाश्च मनोगाश्च वायुवेगसमाश्च ये । बहुवका बहुशिरा बहुवा हुसमन्विताः ॥ १५७ ॥ बहुपादा बहुदृशः सर्पाभरणभूषिताः । विकटा मुकुटाः केचित्तथा वै रत्नधारिणः ॥ १५८ ॥ सूर्यकोटिप्रतीकाशा विद्युत्सदृशवर्चसः । कपिला हुतभुग्वर्णाः प्रमथा बहुरू पिणः॥१५९॥गृह्णन्तु बलयस्सर्वे तृप्ता यान्तु बर्लिनमः । आचार्यस्तु ततो नीत्वा कलशं मंत्रमंत्रितम् ॥ १६०॥ स्वयं प्रत्यङ्मुखो भृत्वा प्राङ्मुखं यजमानकम् । स्वशाखोक्तेन मंत्रेण आगमोक्तेन वा तथा ॥ १६१ ॥ स्रापयेत्कुम्भतोयेन मंत्रः पौराणिकैस्तथा । वैदिकैर्वा तथा मन्त्रैः सवत्रस्थः कुटुम्बवान् ॥ १६२ ॥ सदारपुत्रमेतस्य यजमानस्य ऋत्विजः । सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु ये च सिद्धाः पुरातनाः ॥ १६३ ॥ ब्रह्मा विष्णुश्च शंभुश्च साध्याश्च समरुद्गणाः । आदित्या वसवो रुद्रा अश्विनौ चभिपवरौ ॥ १६४ ॥ ग्रहण करो. तृप्त होकर जाओ उनके प्रति नमस्कार है फिर आचार्य मन्त्रोंसे अभिमंत्रित किये हुए कलशको लेकर ॥ १६० ॥ आप पश्चिमको मुख करके पूर्वाभिमुख बैठे हुए यजमानको अपनी शाखामें कहे वेदके मन्त्रोंसे ॥ १६१ ॥ अथवा पौराणिक मन्त्रोंसे वस्त्रपर स्थित कुटुम्बसहिन पूर्वोक्त यजमानको घटके जलसे स्नान करवावे ॥ १६२ ॥ स्त्री और पुत्रसहित यजमानको ऋत्विजभी स्नान करवावे देवता और जो

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