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वि. प्र. 1169 11
उसके सब कम में पुत्र द्वारा धन आदिकी वृद्धि होती रहती है. यह द्वारकी विधि ब्रह्मा मुखसे कही हुई जो मनुष्य विधिसे करता है। वह सुखी और पुत्रवान् होता है ॥ ११३ ॥ इति पण्डितमिहिरचन्द्र कृतभाषाविवृतिसहिते वास्तुशास्त्रे द्वारनिर्माणं नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ अव वापी कूप तडाग पुष्कर उद्यान मण्डप इनके बनवाने की विधिको क्रमसे कहता हूं ॥ १ ॥ आय और व्यय आदिकी भली प्रकार शुद्धिको और मास शुद्धि को यहां भली प्रकार विचारे, जैसे घर और देवमन्दिर में कहआये हैं ॥ २ ॥ त्रिकोण चतुरस्र वर्तुल तडाग आदि उत्तम पुत्रदारधनादीनां वृद्धिदं सर्वकर्मणि । इति द्वारविधिः प्रोक्तो मया ब्रह्ममुखोदितः । यः करोति विधानेन स सुखी पुत्रवान् भवेत् ॥११३॥ इति वास्तुशास्त्रे द्वारनिर्माणं नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७॥ अधुना कथयिष्यामि वापीकूप क्रियाविधिम् । तडागपुष्यान मण्डपानां यथाक्रमम् || १ || आयव्ययादिसंशुद्धिं मासशुद्धिं तथैव च । यथा गेहे देवगेहे तथैवात्र विचारयेत् ॥ २ ॥ त्रिकोण चतुरस्रं च वर्तुलं चोत्तमं स्मृतम् । धनुषं कलशं पद्मं मध्यमं तज्जलाश्रयम् ॥ ३॥ सर्पोरगं ध्वजाकारं न्यून प्रोक्तं च निन्दितम् ॥ कोशो धान्यं भयं शोकनाशनं सौख्यमेव च ॥ ४॥ भयं रोग तथा दुःखं कीर्ति व्याग्निजं भयम् । यशश्च कमतश्चैत्रमासादेस्तत्फलं स्मृतम् ||५|| रोहिणी चोत्तरात्रीणि पुष्यं मैत्रं च वारुणम् । पित्र्यं च वसुदैवत्यं भगणो वारिबन्धने । जलशोपो भवेत्सूर्ये भौमे रिक्तं विनिर्दिशेत् ॥ ६ ॥
कहा है. धनुष कलश पद्मके आकारका जलस्थान मध्यम कहा है ॥ ३ ॥ सर्प उरग ध्वजाके आकारका न्यून और निन्दित कहा है. कोश धान्य भय शोकनाश सुख || ४ || भय रोग और दुःख कीर्ति द्रव्य अनिका भय और यश ये फल क्रमसे चैत्र आदि मासमें जलस्थानके बम वाने में कहे हैं ॥ ५ ॥ रोहिणी तीनों उत्तरा पुष्य अनुराधा शतभिषा मघा और धनिष्ठा ये नक्षत्रोंका गण जल स्थानके बनवाने में विहित है,
भा. टी.
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