Book Title: Visesavasyakabhasya Part 2
Author(s): Jinbhadrasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 17
________________ विशेषावश्यकभाष्ये हमे आसगा य भिंगार टालियंटो य । चामर जोती रक्खं करेन्ति एतं कुमारीओ ॥ १७९॥१५८९ ॥ देणगमि वरिसे सक्कागमणं च वंसठर्वेणट्टा | जं च जधा जम्मि वए जोगं कासी य तं सव्वं ॥ १८० || १५९० ॥ सक्को सवणे इक्खु अगू तेण होन्ति इक्खागा । " आहार मंगुलीए विहिंति देवा मणुष्णं तु ॥ १८१॥ १५९१॥ [१०४ - प्र० ] सो वढति भगवंतो " दियलोगचुतो" अणोवम सिरीओ । देवगणसंपरिवुडो णंदाय सुमंगलासहितो || १८२ ॥ १५९२॥ असितसिरयो सुणयणो" विवोट्ठो धवलंत पंतीओ । वरपउमग भगोरो "फुल्लुप्पल गंधणिस्सासो ॥ १८३ ॥ १५९३ ॥ जातीसरो" तु भगवं अँप्पपिडितेहि तिहि तु णाणेहि । "कंतीय य बुद्धीय य अंग्भतिओ तेहिं मणुयेहि ॥ १८४॥१५९४॥ पढमो अकालमच्चू तर्हि तालफलेण दारओ तु' हतो | कण्णा य कुलगरे सिट्ठे गहिता उसभपत्ती ॥। १८५ ।। १५९५ ॥ भोगसमत्थं गातुं वरकम्मं तस्स कासि देविंदो । दो वरमहिलाणं बहुकम्मं कासि देवीओ || १८६ ॥१५९६॥ छपुव्वतहस्सा पुव्विं जायेस्स ' जिणवर्रिदस्स । २३ २९० २२ तो भरहवंभिसुन्दरि बाहुबली चेव जायाई ॥ १८७॥१५९७॥ सुमंगला भरहो वंभी य मिहुणयं जायं । देवीय सुनंदा बाहुबली सुंदरी चैत्र || १५९८ ॥ Jain Educationa International [ नि० १७९ १ तालियंटा को हा दी। २ एषा गाथा म प्रतौ नास्ति । ३ देसूणग च वासं सक्का को । देसूण च वरिसं हा म दी । ४ वणाय हा म दी । ५ जंच जहा जिणजोग्गं सव्वं तं तस्स कासी य को । आहारमंगुलीए ठवंति देवा मणुष्णं तु हा दी। आहार, ...... लीए विहिति देवा...... म । ६ खाया जे । ७ जं च जहा जंमि वए जोगं कासी य तं सव्वं हा दी म । -इत्येवं गा० १५९०-९१ तमयोरुत्तरार्धयोर्व्यत्ययः दृश्यते । ८ विहेंति को । ठवंति दी हा । ९ अह वइ सो भयवं हा मदी । १० दिव को । ११ ° तो य अणुव' म १२ दाए म को। दाइ हा दी । १३ बिंदु हा दी। विंव। जें । १४ फुलु' जे । १५ नीसासो को हा मदी । १६°रो य को । °रो अ हा दी। १७ अप्परिवडिएहिं को हा मदी । १८ 'तीहि हा दी । ती बु म। तीए हापा १९ द्धीहि हा दी। डीए म । डीइ हापा २० अन्महिओ को हा दी। अम्भहितो म । २१ ओ पहओ हा दी । २२ रेहि यसि म । २३ इयानेव गाथांशः उद्धः जे प्रतौ । आचार्य हरिभद्र - मलयगिरिदीपिकाकारैः मूलभाष्यत्वेन संमता । २४ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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