Book Title: Virchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Author(s): Shyamlal Vaishya Murar
Publisher: Jainilal Press

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होतो थी, अब नहीं होती, ऐसी स्थित न कभी होसकती है और न थी । प्रत्येक काल में कर्त्तव्य शाली पुरुष अवश्य थे। जिस देश में, जिस धर्म में, और जिस समाज में कर्तव्यवान पुरुषों का जन्म होता है, वह देश, वह धर्म, और वह समाज इस पृथवी पर स्वर्ग तुल्य संचार करता है। अरे भारतवर्ष । अरे जैन समाज । तू कर्तव्य परायण पुरुषों का जन्म किसी एकही काल में नहीं वरन् सदेव देता रह ? प्राचीन काल की संपादित उन्नति को पनः इस भूमंडल पर विस्तारित करदें ? ओ अविनाशी काल ! सैकड़ो नहीं तो नहीं किन्तु थोड़ी संख्या में ही कर्तव्य शाली नर रत्नों को हमारे समाज में उत्पन्न कर और उनके द्वाग जैन धर्म का प्रकाश भूमंडल पर डाल ! प्रिय वाचक, भूमंडल पर जैन धर्म का प्रकाश डालने वाले एक महात्मा के अमूल्य चरित्र का आज मैं आप को परिचय कराता हूँ। वीरचन्द भाई का जीवन मुशिक्षित और जैनधर्मोन्नति के इच्छुक युवकों के लिये अनुकरणीय है। जैन धर्म पृथवी पर बसने वाले समस्त प्राणियों का धर्म है। जिन धर्म अपनी आत्मा का जो धर्म वह जिन धर्म है । जिन प्रणीत धर्म का पाश्चात्य देशमें प्रसार करने के लिये सुशिक्षित और उत्साही बीरचन्द ने कैसा उद्योग किया । बीरचन्द के चरित्र से इसके लिये शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । जैन धर्म के ऊपर अन्य समाजों में दिये हुए भाषण, और कार्य करने की अपूर्व शक्ति आदि से आपकी कर्तव्य दक्षता सिद्ध होती । इसी लिये श्रापका चरित्र इतना बोध प्रद है । जो जन्म लेता है वह अवश्य मरेगा यह प्रकृति का अटत नियम है। कोई भी अमर होने का For Private and Personal Use Only

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