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( १८ ) पश्चात् जलयात्रा द्वारा वे अमेरिका को गये । जाते समय बम्बई बन्दर पर "यशस्वी हों। इस ध्वनि और आशीर्बाद की दृष्टि होने लगी। हिन्दुधर्म मंडल की ओर से स्वामी विवेकानन्द श्रादि भी इस विश्व धर्म परिषद में सम्मिलित थे। मि० गांधी जैसे तरुण पुरुष ने ऐसे महत्व के कार्य को उत्साह के साथ स्वीकार किया, इस से मि० गांधी की असामान्य विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता भलीपकार से सूचित होती है । कारण, यह परिषद् धर्म विषयक ही नहीं था। किन्तु उस गढ़ समय में श्रेष्ठ और अच्छे धार्मिक तत्व जानने की इच्छा से बडे २ विद्वान अधिक संख्या में एकत्रित हुए थे । इस जग विख्यात और अपूर्व प्रसंग पर जैन धर्म की प्रतेष्ठता प्रकाशित करने में एक जैन युवक का मनोबल किस प्रकार से काम करगया, यह जैनियों के वर्तमान इतिहास में चिरस्मणीय रहेगी।
अमेरिका में किये हुये कार्य सितम्बर सन् १८८३ से अमेरिका के चिकागो शहर में इस प्रचण्ड सार्व धर्म परिषद् का प्रारम्भ हुवा । और सत्तर दिनतक रही । इसमें पृथक पथक देश के पृथक २ धर्म प्रतिनिधियों ने अपने अपने धर्म का स्वरूप प्रकाशित किया। मि० वीरचन्द ने जैन धर्म का स्वरूप नीति और तत्वज्ञान मय ऐसी उत्तमता से प्रकाशित किया कि सबका ध्यान आकृष्ट होगया हम अपनी ओर से कुछभी न कह कर नीचे एक प्रसिद्ध श्रमे रिकन समाचार पत्रकी सम्मति देते हैं।
"A number of distinguished Hindu schalars, philoso. phers, and Religous teachers attended and addressed the Parliament, some of them taking rank wich the highest
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