Book Title: Virchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Author(s): Shyamlal Vaishya Murar
Publisher: Jainilal Press

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) pf any race for learning eloquence and piety. But it is wife to say that no one of the pricental scholars was listened to with greater intrest than was the young lay man of the Jain community as he declared the Ethics and Philosophy of his people." इसका हिन्दी अनुवाद यह हुवा कि: पारलिया मेंट (परिषद) में प्रतिष्ठित हिन्दू विद्वान तत्व ज्ञानी धर्मोपदेशक उपस्थित थे और उन्होंने भाषण भी दिये थे। जिनमें से कितने ही अपनी जातिकी विद्वत्ता, वक्तृत्व कला और धर्म भक्ति के पण्डित थे । पर यह बात निर्भयता से कही नासक्ती है कि पौर्वाल पंडितों में जैन समाज के युवक नावक ने अपने वर्गकी नीति और तत्व ज्ञान के सम्बन्ध में तो भाषण दिये थे उनमें जो रस था और वे जिस प्रेम से श्रोताओं ने सुने थे वे किसी दूसरे के नहीं सुने उनकी समता कोई भी भाषण नहीं करसक्त" . . इसके प्रथम विदेशों में जैन धर्म का प्रचार करने के लिये कोई नहीं गया था विदेशियों को जैन धर्म का परिचय कराने के लिये सब से प्रथम सम्मान इसी श्रावक को प्राप्त हुवा । बम्बई का व्याख्यान ___ सन् १८६५ के जून में ये बम्बई आए । बम्बई आने के पश्चात मि. गांधी ने जैनतस्त्र ज्ञान का अभ्यास विशेषरूप से प्रारम्भ किया । संसार के दूसरे धर्मों का निरीक्षण करके उनकी तुलना जैन धर्म से की । पश्चात् जैन धर्म के तत्वज्ञान की शिक्षा देने के लिये बम्बई में मि. गांधी ने "हेमचन्द्राचार्य अभ्यासवर्ग स्थापित किया । इस संस्था में कर्म सिद्धांत ( Doctrine of Karmas ) पुनर्जन्म, जड़ और चैतन्य सामान्य For Private and Personal Use Only

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